सद्गुरु के सान्निध्य में शिष्य के रोम-रोम में अनाहद नाद (स्वतः उत्पन्न ध्वनि) और अजपा जाप (बिना प्रयास के चलने वाला मंत्र जाप) सक्रिय होने के पीछे गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण होता है। इसे समझने के लिए हमें ऊर्जा, चेतना, और न्यूरोसाइंस के कुछ पहलुओं पर विचार करना होगा।
- ऊर्जा और चेतना का प्रभाव
सद्गुरु एक उच्च स्तर की चेतना से युक्त होते हैं। उनकी उपस्थिति में शिष्य की ऊर्जा प्रणाली (Energy System) में गहरा परिवर्तन होने लगता है।
जब कोई शिष्य पूर्ण समर्पण के साथ सद्गुरु के पास होता है, तो उसकी सूक्ष्म ऊर्जा प्रणाली (Pranic System) पुनर्संतुलित होने लगती है।
गुरु की ऊर्जा शिष्य के सुषुम्ना नाड़ी को सक्रिय कर देती है, जिससे अनाहद नाद और अजपा जाप स्वतः प्रवाहित होने लगता है।
यह प्रक्रिया गुरुओं की शक्तिपात (Energy Transmission) विधि से भी जुड़ी होती है, जिससे एक विशेष कंपन (vibration) शिष्य में उत्पन्न होता है।
- मस्तिष्क और न्यूरोसाइंस का दृष्टिकोण
गहरे ध्यान या गुरु की कृपा से शिष्य के मस्तिष्क की न्यूरोलॉजिकल संरचना में बदलाव होने लगते हैं।
जब शिष्य ध्यान में उतरता है, तो थीटा (Theta) और डेल्टा (Delta) वेव्स सक्रिय हो जाती हैं, जिससे अचेतन (subconscious) स्तर पर मंत्र जाप होने लगता है।
अध्यात्म में यह “अजपा जाप” कहलाता है, लेकिन न्यूरोसाइंस इसे ऑटोमेटिक न्यूरल पैटर्न (Automatic Neural Pattern) कहता है, जो निरंतर चलता रहता है।
पीनियल ग्लैंड (Pineal Gland) और वैगस नर्व (Vagus Nerve) भी इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे शरीर में आनंद, शांति और दिव्यता की अनुभूति होने लगती है।
- अनाहद नाद: वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पहलू
अनाहद नाद का सीधा संबंध ऊर्जा कंपन (Vibrational Frequency) से होता है।
योग और ध्यान के गहरे स्तर पर, श्रवणेंद्रिय (Auditory Cortex) में विशेष ध्वनियाँ उत्पन्न होने लगती हैं, जो मस्तिष्क के भीतर एक प्रकार की ध्वनि तरंग (Resonance) के रूप में सुनी जाती हैं।
यह वही प्रक्रिया है जिससे ओम की ध्वनि या किसी अन्य सूक्ष्म नाद का अनुभव होता है, जिसे कई योगी अनाहद नाद कहते हैं।
- साधना और गुरु-कृपा का प्रभाव
जब गुरु शिष्य को सही साधना में प्रवृत्त कर देते हैं, तो धीरे-धीरे ऊर्जा केंद्र (Chakras) जागृत होने लगते हैं।
विशेष रूप से हृदय चक्र (Anahata Chakra) और आज्ञा चक्र (Ajna Chakra) के जागरण से अजपा जाप और अनाहद नाद का अनुभव होता है।
गुरु की कृपा से यह प्रक्रिया बहुत सहज और तीव्र गति से हो जाती है, जबकि स्वाध्याय से इसमें अधिक समय लग सकता है।
निष्कर्ष:
सद्गुरु की कृपा से शिष्य के भीतर ऊर्जा और चेतना का जागरण होता है, जिससे उसके भीतर अनाहद नाद और अजपा जाप स्वतः शुरू हो जाता है। यह न केवल आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका न्यूरोसाइंटिफिक आधार भी है, जो इसे वास्तविक और वैज्ञानिक रूप से समझने योग्य बनाता है।
यदि कोई व्यक्ति गुरु के सान्निध्य में श्रद्धा और समर्पण के साथ रहता है, तो यह प्रक्रिया अपने आप घटित होने लगती है और शिष्य के अस्तित्व में दिव्य ध्वनियाँ तथा स्वतः मंत्र जाप प्रवाहित होने लगते हैं।