ये प्रश्न अत्यंत गूढ़ और सच्ची आत्म-साधना की झलक देता है। मनुष्य का जन्म यदि मिला है, तो यह साधारण नहीं है — यह एक अवसर है जीवन-मुक्त और कर्म-मुक्त होने का, अर्थात् इस जीवन में ही मोक्ष को प्राप्त करने का।

अब इस प्रश्न के उत्तर को गहराई से देखते हैं:ओर समझने के प्रयास करते है धर्मकर्म के अनुसार

—मनुष्य अध्यात्म की राह पर कोनसा मार्ग चुने जिससे उसे मुक्तता मिले

मनुष्य के लिए चार प्रमुख आध्यात्मिक मार्ग बताए गए हैं, परंतु हर व्यक्ति की प्रकृति अलग होती है — इसलिए “एक ही मार्ग सभी के लिए” सही नहीं होता। आपको अपनी प्रवृत्ति के अनुसार मार्ग चुनना चाहिए।

(i) ज्ञान मार्ग (राज-मार्ग) — आत्म-ग्रहण का मार्ग

जो लोग तर्क, विवेक और चिंतन में रुचि रखते हैं, उनके लिए श्रेष्ठ।

उपाय: आत्म-चिंतन, “कोन हूँ मैं?” का विवेचन, उपनिषद, भगवद गीता, और अद्वैत वेदांत का अध्ययन।

गुरु उदाहरण: रामण महर्षि, आदि शंकराचार्य।

(ii) भक्ति मार्ग — प्रेम और समर्पण का मार्ग

हृदय प्रधान व्यक्ति के लिए श्रेष्ठ। पूर्ण प्रेम के साथ भगवान को समर्पण।

उपाय: नाम-स्मरण, पूजा, आरती, सत्संग, भगवान में लीनता।

गुरु उदाहरण: मीरा, रामकृष्ण परमहंस, श्री चैतन्य महाप्रभु।

(iii) कर्म मार्ग — निष्काम सेवा का मार्ग

जो लोग सेवा, कर्तव्य और जीवन में सक्रिय हैं, उनके लिए उपयुक्त।

उपाय: स्वधर्म का पालन, फल की इच्छा के बिना कर्म।

भगवद गीता का यह मूल सिद्धांत है: “कर्मण्येवाधिकारस्ते…”

गुरु उदाहरण: स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी।

(iv) राजयोग / ध्यान मार्ग — मन की शुद्धि और समाधि का मार्ग

जिनमें एकाग्रता, ध्यान और आत्म-अनुभव की आकांक्षा है।

उपाय: योग, ध्यान, प्राणायाम, चित्तवृत्ति निरोध।

गुरु उदाहरण: पतंजलि योगसूत्र, परमहंस योगानंद, स्वामी योगानंद।


  1. धर्म और गुरु किसे मानें?

धर्म: सभी धर्म एक ही सत्य की ओर संकेत करते हैं। परंतु आप जिस मार्ग से सहज जुड़ाव महसूस करें, वही श्रेष्ठ है। “जो धर्म आपके मन को निर्मल करे और अंतर्मुख करे, वही आपका मार्ग है।”

गुरु: गुरु का चयन मन से नहीं, अंतःकरण से करें। सच्चा गुरु वही है जो आपको “स्वयं से स्वयं की ओर” ले जाए। साक्षात या ग्रंथ रूपी गुरु, दोनों मान्य हैं।

यदि जीवित गुरु न मिले तो शास्त्र (जैसे भगवद गीता, उपनिषद, योग वशिष्ठ) को गुरु बनाइए यदि ये भी संभव न हो तो एकलव्य की यरह किसी मूर्ति को मन से ईश्वर रूप धारण कर स्तुति करे

“रामायण” में तुलसीदासजी कहते हैं — “बिनु हरिकृपा मिलहि न संता।” यानी सच्चे संत या गुरु ईश्वर की कृपा से ही मिलते हैं।


  1. जीवन मुक्त कैसे हों?

कुछ आवश्यक साधन:

सत्संग: संतों और सत्ग्रंथों का संग।

स्वाध्याय: आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए अध्ययन।

ध्यान: प्रतिदिन ध्यान और आत्मनिरीक्षण।

वैराग्य: मोह और माया से दूरी।

श्रद्धा और सबुरी: विश्वास और धैर्य।


हमारा इस भौतिक दुनिया के भौतिकवाद में आध्यात्मिकता को जानना व स्वम् के
आत्मस्वरूप को जानना ही जीवन की परम साधना है।

यदि आप तर्कशील और शांति प्रिय हैं, तो ज्ञान योग और ध्यान योग अपनाइए।

यदि आप प्रेमशील हैं, तो भक्ति योग से प्रारंभ कीजिए।

यदि आप कर्मठ हैं, तो निष्काम कर्म योग से आगे बढ़िए।

प्रारंभ कहीं से भी हो, अंत आत्म-बोध में ही होता है।

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