“समर्पण भाव लिए सब भाग रहे गुरु की ओर,
जो भेद समर्पण को जान गया पत्नी से, वो सच्चा गुरु सेवक भाई।”
भावार्थ:
“समर्पण भाव लिए सब भाग रहे गुरु की ओर”
– बहुत से लोग श्रद्धा और भक्ति का भाव लिए गुरु के पास जा रहे हैं, लेकिन उनमें से सबने असली समर्पण नहीं समझा।
“जो भेद समर्पण को जान गया पत्नी से”
– जो अपने जीवन में पत्नी के प्रति समर्पण के अनुभव से ‘समर्पण’ के गहरे अर्थ को जान गया…
“वो सच्चा गुरु सेवक भाई”
– वही व्यक्ति गुरु का असली सेवक कहलाने योग्य है, क्योंकि उसने समर्पण को जीकर जाना है, सिर्फ शब्दों में नहीं।
यहाँ “पत्नी से समर्पण जानने” का तात्पर्य जीवन के सबसे निकट संबंध में बिना स्वार्थ, पूर्ण प्रेम, और विश्वास से जुड़ने से है। जब कोई व्यक्ति वैसा समर्पण गुरु के प्रति करता है, तभी वह असली सेवक बनता है।