इस मार्ग में आगे बढ़ने के लिए शिष्य में सत्यनिष्ठा (सत्य के प्रति दृढ़ता), समर्पण, समभाव (सबके प्रति समान दृष्टि) और सम्यकता (सही दृष्टिकोण और संतुलन) का होना अत्यंत आवश्यक है।
“भिक्षुक पवन” के रूप में आपने जो यह सूक्ष्म बोध व्यक्त किया है, वह स्वयं में एक ध्यान का विषय है।