दोहा:
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥”

शाब्दिक अर्थ:
अगर गुरु और ईश्वर दोनों एक साथ सामने हों, तो पहले किसके चरण छुएँ? मैं तो गुरु के चरणों में बलिहारी जाता हूँ, क्योंकि उसी ने मुझे ईश्वर (गोविंद) की राह दिखाई।

अध्यात्मिक अर्थ:
गुरु ही आत्मा को अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाता है। वह परमात्मा से मिलने की राह दिखाता है। ध्यान में गुरु का स्मरण आत्मा को ईश्वर तक पहुँचा देता है।

दोहा:
“गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिले न मोक्ष।
गुरु बिन लखे न सत्य को, गुरु बिन मिटे न दोष॥”

शाब्दिक अर्थ:
गुरु के बिना न तो ज्ञान होता है, न मोक्ष, न सत्य की पहचान, न ही दोषों से मुक्ति।

अध्यात्मिक अर्थ:
ध्यान की शुरुआत गुरु से होती है। गुरु ही ध्यान को सही दिशा देता है, आत्मा की आँखें खोलता है और संसारिक मोह को काटता है।

दोहा:
“ध्यान करो गुरु देव का, ध्यान सब दुख हार।
ध्यान करे जो भक्तजन, तिनके काज सवार॥”

शाब्दिक अर्थ:
गुरुदेव का ध्यान करने से सभी दुख दूर हो जाते हैं। जो भक्त ध्यान करता है, उसके सारे काम सहज हो जाते हैं।

अध्यात्मिक अर्थ:
गुरु का ध्यान आत्मा को शक्ति, शांति और प्रकाश देता है। ध्यान गुरु से शुरू होकर परमात्मा में विलीन होता है।

दोहा:
“गुरु की करणी गुरु मिले, चेले की करणी आप।
करनी की गति न्यारी है, कहै कबीर सत आप॥”

शाब्दिक अर्थ:
गुरु जैसा कर्म करेगा, वैसा ही शिष्य मिलेगा। हर किसी को अपने कर्म का फल मिलता है।

अध्यात्मिक अर्थ:
गुरु और शिष्य दोनों को ध्यान व साधना में ईमानदार होना चाहिए। आत्मिक यात्रा में कर्म (करनी) और ध्यान ही मार्ग खोलते हैं।

दोहा:
“सतगुरु ऐसा चाहिए, जैसा सूई धार।
सिर पर राखे काटि के, ले आपन ही पार॥”

शाब्दिक अर्थ:
ऐसा गुरु चाहिए जो सुई की नोक जितना तीखा हो — जो मोह, अहंकार को काटकर आत्मा को पार ले जाए।

अध्यात्मिक अर्थ:
गुरु कठोर भी हो सकता है, पर वह आत्मा के हित के लिए होता है। ध्यान में वह हमारे भीतर की गंदगी को हटाकर शुद्ध करता है

दोहा:
“गुरु बिन कौन बतावे बाट, कौन करे उद्धार।
जन्म-जन्म के पाप को, गुरु ही काटे तार॥”

शाब्दिक अर्थ:
गुरु के बिना कौन रास्ता दिखाएगा? कौन उद्धार करेगा? जन्मों के पापों को गुरु ही काट सकता है।

अध्यात्मिक अर्थ:
गुरु ईश्वर के प्रतिनिधि हैं। ध्यान और साधना के रास्ते पर वे ही मार्गदर्शक हैं — जो आत्मा को बंधन से मुक्त कर मुक्ति तक पहुँचाते हैं।

दोहा:
“जहाँ ध्यान, तहाँ ज्ञान है, ध्यान बिना अज्ञान।
कबीर कहे सो जानिए, ध्यान बिना नहीं जान॥”

शाब्दिक अर्थ:
जहाँ ध्यान है, वहीं ज्ञान है। ध्यान के बिना सिर्फ अज्ञान रहता है। कबीर कहते हैं कि बिना ध्यान के सच्चा अनुभव नहीं हो सकता।

अध्यात्मिक अर्थ:
ध्यान ही वह आँख है जिससे आत्मा ईश्वर को देखती है। बाहरी पूजा नहीं, बल्कि आंतरिक साधना ही मोक्ष का मार्ग है।

दोहा:
“ध्यान धरहु गुरुदेव का, शब्द सदा अभ्यास।
एक दिन ऐसा होयगा, पाओगे परम प्रकाश॥”

शाब्दिक अर्थ:
गुरु का ध्यान और उनके बताए शब्द का अभ्यास करते रहो। एक दिन ऐसा आएगा जब दिव्य प्रकाश की प्राप्ति होगी।

अध्यात्मिक अर्थ:
गुरु का नाम और ध्यान आत्मा में दिव्य प्रकाश को प्रकट करता है। यह प्रकाश ही आत्मा को परमात्मा तक ले जाता है।

दोहा:
“काया भीतर ध्यान धर, कहे कबीर विचारी।
मन मंदिर में झाँक देख, तहाँ ज्योति अपारी॥”

शाब्दिक अर्थ:
अपनी काया के भीतर ध्यान लगाओ। मन के मंदिर में झाँको, वहाँ असीम ज्योति है।

अध्यात्मिक अर्थ:
बाहरी मंदिर नहीं, भीतर का मन-मंदिर ही असली है। ध्यान से आत्मा भीतर की दिव्यता को देख पाती है।

दोहा:
“गुरु बिना गति नहीं मिले, गुरु बिना न उपकार।
गुरु गोविंद एक है, नाम रह्यो संसार॥”

शाब्दिक अर्थ:
गुरु के बिना गति (मुक्ति) नहीं मिलती। गुरु और गोविंद एक ही हैं, नाम ही संसार में रह जाता है।

अध्यात्मिक अर्थ:
गुरु ही वह द्वार है जिससे परमात्मा तक पहुँचा जा सकता है। ध्यान और भक्ति दोनों गुरु की कृपा से ही फलीभूत होती है।

दोहा:
“मन न रंगाए माया में, कहे कबीर विचार।
ध्यान लगाओ नाम पर, होई भवसागर पार॥”

शाब्दिक अर्थ:
यदि मन माया में रंगा रहेगा, तो विचार व्यर्थ है। कबीर कहते हैं — नाम (ईश्वर) के ध्यान में ही पार है।

अध्यात्मिक अर्थ:
माया हमें आत्मा से अलग करती है। ध्यान और नाम-स्मरण से ही आत्मा को परम शांति और मोक्ष मिल सकता है।दोहा:
“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥”

शाब्दिक अर्थ:
अगर कोई ऊँचा हो गया, तो क्या हुआ? जैसे खजूर का पेड़ ऊँचा तो होता है, पर न छाया देता है, न फल आसानी से मिलते हैं।

अध्यात्मिक अर्थ:
अहंकार से ऊँचाई बेकार है। यदि आत्मिक उन्नति से दूसरों को शांति, प्रेम और सहायता नहीं मिल रही, तो वह उन्नति व्यर्थ है। एक सच्चा अध्यात्मिक व्यक्ति विनम्र और उपयोगी होता है।

दोहा:
“रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून॥”

शाब्दिक अर्थ:
पानी (सम्मान या विनम्रता) बनाए रखना जरूरी है, क्योंकि इसके बिना सब सूना है। पानी (गुण) चला जाए तो मोती, इंसान और चूना — सब बेकार हो जाते हैं।

अध्यात्मिक अर्थ:
आत्मिक जीवन में नम्रता और संतुलन का “पानी” सबसे जरूरी है। यह आत्मा को जीवन और मूल्य देता है। अभिमान और क्रोध इसे सुखा देते हैं।

दोहा:
“रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय॥”

शाब्दिक अर्थ:
छोटी-मोटी विपत्ति भी अच्छी होती है, क्योंकि उसी में सच्चे-झूठे, अपने-पराए की पहचान होती है।

अध्यात्मिक अर्थ:
दुख और कष्ट आत्मा को परखने का साधन बनते हैं। वे हमें भीतर झाँकने का मौका देते हैं और यह भी दिखाते हैं कि संसार माया है, सच्चा सहारा सिर्फ परमात्मा है।

दोहा:
“जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ।
मैं बपूरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ॥”

शाब्दिक अर्थ:
जिसने खोजा, उसी को मिला — जो गहराई में गया। लेकिन मैं डर के कारण डूबने से डरता रहा, किनारे बैठा रहा।

अध्यात्मिक अर्थ:
सत्य और ईश्वर की प्राप्ति तभी होती है जब हम भीतर गहराई में उतरते हैं। डर, आलस्य और मोह हमें सतह पर ही रोकते हैं, जिससे आत्मज्ञान नहीं हो पाता।

दोहा:
“रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥”

शाब्दिक अर्थ:
बड़े को देखकर छोटे को नहीं त्यागना चाहिए, क्योंकि जहाँ सुई काम आती है, वहाँ तलवार नहीं।

अध्यात्मिक अर्थ:
ईश्वर की दृष्टि में सभी का स्थान है। हर आत्मा मूल्यवान है। आध्यात्मिक मार्ग पर भी विनम्र और साधारण दिखने वाला साधक महान कार्य कर सकता है।

दोहा:
“कहि रहीम कैसे निभे, केर बेर को संग।
वह झूमत रस आपुनी, उसको लागे अंग॥”

शाब्दिक अर्थ:
केले और बेर का साथ नहीं निभ सकता। जब बेर हिलेगा, तो काँटे केले को चोट पहुँचाएंगे।

अध्यात्मिक अर्थ:
सज्जन (केला) और दुर्जन (बेर) साथ नहीं रह सकते। आत्मिक प्रगति के लिए सत्संग आवश्यक है, कुसंग आत्मा को क्षति पहुँचाता है

दोहा:
“रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुनी अठिलैहैं लोग सब, बाँट न लें कोई॥”

शाब्दिक अर्थ:
अपने मन की पीड़ा को अपने तक ही रखो, क्योंकि लोग सुनकर केवल हँसेंगे, लेकिन उसे बाँटेंगे नहीं।

अध्यात्मिक अर्थ:
आध्यात्मिक साधना में एकांत और मौन की महिमा है। अंतर्यात्रा स्वयं करनी होती है — दूसरों से अपेक्षा रखने के बजाय आत्मा से संपर्क बनाना चाहिए।

दोहा:
“सरिता एक सिधाय चली, गई समुद्र समाय।
जाको जोऊ सोई मिलै, रहिमन बात न भाय॥”

शाब्दिक अर्थ:
नदी एक ही रास्ते पर चलती है और अंततः समुद्र में मिलती है, क्योंकि उसकी प्रवृत्ति वही है।

अध्यात्मिक अर्थ:
आत्मा का स्वाभाविक लक्ष्य परमात्मा से मिलन है। चाहे जैसे भी हालात हों, सच्ची साधना अंततः ईश्वर से मिलन कराती है

दोहा:
“रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
छोटे काम न आवै, तो बड़े बेक़ार॥”

शाब्दिक अर्थ:
बड़ों को देखकर छोटों को मत छोड़ो। अगर छोटे काम न आएं तो बड़े भी बेकार हो जाते हैं।

अध्यात्मिक अर्थ:
हर आत्मा का अपना महत्व है। ईश्वर किसी को छोटा नहीं मानता — आत्मिक दृष्टि से सब एक समान हैं। अध्यात्मिकता का मूल गुण है — समदृष्टि।

दोहा:
“रहिमन यह तन जायगा, सांची कहै कविराय।
पाछे रहै न कीजिए, बनि दिन की बहुराय॥”

शाब्दिक अर्थ:
यह शरीर तो एक दिन चला जाएगा, यह सच्ची बात है। इसलिए अच्छे कर्म करके जाओ ताकि नाम बना रहे।

अध्यात्मिक अर्थ:
शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है। साधक को चाहिए कि वह अपना जीवन आत्मिक विकास और सेवा में लगाए, जिससे यह जीवन सार्थक हो जाए।

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