“सुरीति निरति का पीव है, शब्द विलास विनोद”
शब्दार्थ:
सुरीति = उत्तम आचरण / शुभ नीति
निरति = लगन, गहरी रुचि
पीव = प्रियतम / परमात्मा (यहाँ “ध्यान का प्रिय विषय”)
यदि यह कबीरदास जी की रचना है, तो यहाँ सुरति से मतलब है चेतना (consciousness) और निरति नृत्य शब्द का अपभ्रंश है, जिसका मतलब है वह शक्ति जो शब्द को जगाती है। चेतना शक्ति निरत द्वारा शब्द को जगाती है और जब चेतना शक्ति शब्द के साथ जुड़ जाती है तो उसे सूरत-शब्द योग या अजपाजाप कहा गया है।
‘सूरत समानी शब्द में ताहिं काल नही खाय’ । राजेन्द्र कुमार गुप्ता
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