किसी भी इंसान की जब म्रत्यु होती है तो उसकी आत्मा की दो तरह की स्तिथि हो सकती है एक तो स्वम् से संतुष्ट ओर दूसरी स्वम् से असंतुष्ट जो आत्माएं आध्यात्मिक।मार्ग पर चलती है और धर्म के अनुसार जग में अपना व्यवहार रखती है और सुख दुख से कोइ लगाव नही रखती ओर निष्पक्ष जीवन जीती है वह
म्रत्यु
के
बाद शरीर से मुक्त
सुख दुख
से
मुक्त
सुख लोक जिसे
स्वर्ग
कहा है वहा चली
जाती है
ओर अपने
अच्छे कर्मों का सुख
का उपभोग
करती है
ओर कर्मो के अनुसार
किसी श्रेष्ठ घर मे पुनः
जन्म।ले कर सुखी रहती है
ओर कर्म।मुक्त हो इस संसार से मुक्त ब्रह्मांड में फ्रीज़ हो जाती है पितृ लोक।और देव लोक फिर मुक्त लोक में रह जाती है

ओर जो आत्माएं म्रत्यु के बाद सत्कर्म नही करती और कर्म।नेक नही होते उनके अंदर पश्चताप रहता है और आत्मा में अशांति होने के कारण भटकाव उतपन्न हो जाता है जिससे वो कर्म।मुक्त न होकर पृथ्वी या इससे नीचे के लोक।में गति करती है और असंतुष्ट रहती है और कर्म सही होने के कारण उसे पाप कर्मों का भुगतान यही इसी लोक में करना पड़ता है और जब कर्म सही नही होते तो निम्न श्रेणी में जन्म।ले कर कर्मो का भुगतान करना होता है जिसमे सुख कम और दुखों का भुगतान अधिक होता है यदि ये आत्मा पृथ्वी लोक।पर रह कर नेक काम करती है तो इनको पृथ्वी लोक से पितृ लोक और नेक काम।करने पर देव लोक के हकदार हो जाती है

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