भक्ति से शुरू होकर समाधि और अंत में नाद ब्रह्म तक पहुँचना। यह मार्ग एक साधक के लिए सबसे महत्वपूर्ण और transformative (रूपांतरकारी) होता है। आइए, इस पूरी यात्रा को गूढ़ता के साथ समझते हैं।
1. भक्ति: यात्रा का आरंभ
भक्ति मार्ग हृदय और भावनाओं से जुड़ा है। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि ईश्वर या गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण, प्रेम और विश्वास की अवस्था है। जब भक्ति गहरी होती है, तो साधक का मन बाहरी दुनिया से हटकर पूरी तरह अपने आराध्य में लीन हो जाता है।
भक्ति की अवस्था में क्या होता है:
- अहंकार का क्षरण: साधक का “मैं” भाव धीरे-धीरे खत्म होने लगता है। वह खुद को एक छोटे से अंश के रूप में देखता है, जो ब्रह्मांड की विराट चेतना का हिस्सा है।
- भाव-तरंगें: जब भक्ति चरम पर पहुँचती है, तो शरीर और मन में एक प्रकार का आंतरिक कंपन या भाव-तरंग उत्पन्न होता है। यह कंपन आंतरिक ऊर्जा को गति देता है।
- तववजुह (शक्तिपात) का प्रभाव: इसी अवस्था में, यदि साधक को गुरु का तववजुह (आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार) प्राप्त होता है, तो यह ऊर्जा साधक के भक्ति भाव को कई गुना बढ़ा देती है और सुप्त कुंडलिनी शक्ति को जगाने का काम करती है।
2. समाधि: चेतना की एकाग्रता
जब भक्ति से उत्पन्न हुई ऊर्जा और गुरु की कृपा मिलकर साधक के मन को पूरी तरह शांत कर देते हैं, तो वह समाधि की ओर अग्रसर होता है। समाधि कोई नींद की अवस्था नहीं है, बल्कि चेतना की वह अवस्था है जहाँ मन, बुद्धि और अहंकार पूरी तरह से शांत हो जाते हैं। यह एक गहन आंतरिक जागरूकता है।
समाधि की अवस्था में क्या होता है:
- अंतर्मुखी होना: ऊर्जा शरीर के अंदर ऊपर की ओर गति करती है। बाहरी दुनिया का भान धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।
- सूक्ष्म ऊर्जा का अनुभव: साधक अपने शरीर के अंदर सूक्ष्म ऊर्जा के प्रवाह को महसूस करता है। यह ऊर्जा शरीर की नाड़ियों और चक्रों को शुद्ध करती है।
- नाद की शुरुआत: इसी अवस्था में, जब मन पूरी तरह शांत और केंद्रित हो जाता है, तो बाहरी शोर बंद हो जाता है और आंतरिक ध्वनि, जिसे नाद कहते हैं, सुनाई देने लगती है। यह नाद समाधि का एक प्रमुख लक्षण है।
3. नाद ब्रह्म: परम चेतना में विलय
नाद, जो समाधि में पहली बार सुनाई देता है, केवल एक ध्वनि नहीं है। यह ब्रह्मांड की मूल ध्वनि है, जिसे नाद ब्रह्म कहा जाता है। “नाद” का अर्थ है ध्वनि और “ब्रह्म” का अर्थ है परम चेतना या ईश्वर। नाद ब्रह्म का अर्थ है वह ध्वनि जो परम चेतना का सार है।
नाद ब्रह्म तक की यात्रा:
- प्रारंभिक नाद: शुरुआत में यह नाद अलग-अलग तरह का हो सकता है—जैसे घंटे, शंख, वर्षा या बांसुरी की आवाज। यह साधक की आंतरिक शुद्धि के स्तर पर निर्भर करता है।
- ध्यान की एकाग्रता: साधक धीरे-धीरे इन ध्वनियों पर ध्यान केंद्रित करना सीखता है। बाहरी मन की बकबक पूरी तरह से बंद हो जाती है।
- सूक्ष्म ध्वनि: जैसे-जैसे ध्यान गहरा होता है, स्थूल ध्वनियाँ लुप्त हो जाती हैं और साधक को बहुत ही सूक्ष्म, अविरल ध्वनि सुनाई देने लगती है, जिसे कुछ लोग अनाहत नाद कहते हैं। यह ध्वनि हृदय चक्र (अनाहत चक्र) से जुड़ी होती है।
- नाद ब्रह्म में विलय: जब साधक पूरी तरह इस सूक्ष्म ध्वनि में लीन हो जाता है, तो वह ध्वनि और उसके बीच का अंतर मिट जाता है। साधक स्वयं उस ध्वनि का हिस्सा बन जाता है। यही अवस्था नाद ब्रह्म में विलय है। यह अद्वैत (non-duality) की अवस्था है जहाँ साधक और ईश्वर एक हो जाते हैं।
इस अवस्था में पहुँचने के बाद, साधक को न केवल आंतरिक शांति मिलती है, बल्कि वह ब्रह्मांड की हर चीज से जुड़ा हुआ महसूस करता है। भक्ति की यात्रा, जो प्रेम से शुरू हुई थी, अंत में परम चेतना में विलय के साथ पूरी होती है।