सूर्य और “ॐ”ऋग्वेद, उपनिषद और योगशास्त्र में कहा गया है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक ही मूल ध्वनि “ॐ” (प्रणव) से स्पंदित है सूर्य को “प्रकाश” और “प्राण” का स्रोत माना गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी सूर्य से तरंगें (प्रकाश, ध्वनि के सूक्ष्म कंपन, ऊर्जा) निरन्तर निकल रही हैं।ऋषियों ने अपने ध्यान में उस अनाहत नाद (अंतरिक्ष में गूँजती सूक्ष्म ध्वनि) को “ॐ” के रूप में अनुभव किया।इसलिए सूर्य से निकलने वाले स्पंदन और ऊर्जा का प्रतीकात्मक रूप “ॐ” माना गया।आत्मा और “ॐ” का सम्बन्धमाण्डूक्य उपनिषद कहता है : “ॐ इत्येतदक्षरं इदं सर्वं” — यह सम्पूर्ण सृष्टि का बीज “ॐ” है।आत्मा (आत्मन्) और ब्रह्म (परमात्मा) एक ही हैं “अयमात्मा ब्रह्म”।अब प्रश्न: “ॐ तो ध्वनि है, तो आत्मा को कैसे ॐ माना जाए?” आत्मा कोई भौतिक ध्वनि नहीं है। आत्मा शुद्ध, निर्विकार, चेतना है। “ॐ” उस चेतना की ध्वन्यात्मक अभिव्यक्ति है।जैसे बिजली (शक्ति) को हम सीधे नहीं देख पाते, पर उसका प्रकाश या ध्वनि रूप अनुभव करते हैं।वैसे ही आत्मा/ब्रह्म की सूक्ष्म सत्ता का अनुभव ऋषियों ने “ॐ” के नाद के रूप में किया।अनुभव का स्तरसूर्य से निकला प्रकाश और ध्वनि : स्थूल जगत का संकेत।ॐ नाद : सूक्ष्म जगत का प्रवेश-द्वार।आत्मा : कारण जगत की शुद्ध चेतना, जिसका प्रत्यक्ष अनुभव मौन ध्यान में होता है।इसलिए — “ॐ” आत्मा का प्रतीक (प्रत्यवमर्श) है आत्मा ध्वनि नहीं है, पर “ॐ” उसके सत्य का अनुभव कराने वाला माध्यम है।ॐ” = सम्पूर्ण ब्रह्माण्डउपनिषद कहता है:ॐ इत्येतदक्षरं इदं सर्वम्”अर्थ — यह सम्पूर्ण जगत “ॐ” अक्षर से ही व्याप्त है।मतलब, “ॐ” केवल उच्चारण नहीं, बल्कि अस्तित्व का बीज है।
२. आत्मा की चार अवस्थाएँआत्मा को चतुष्पाद (चार पाद) बताया गया है, और प्रत्येक का सम्बन्ध “ॐ” के एक अक्षर से है:1. जाग्रत अवस्था यह वह स्थिति है जिसमें हम इन्द्रियों द्वारा संसार को देखते-सुनते हैं।”अकार” इस अवस्था का प्रतीक है।यहाँ आत्मा को “वैश्वानर” कहा गया है।
- स्वप्न अवस्था जब मन भीतर की कल्पना और विचारों के संसार में होता है।
उकार” इसका प्रतीक है।
यहाँ आत्मा “तैजस” कहलाती है। - सुषुप्ति अवस्था (M — मकार)गहरी नींद, जहाँ न कोई सपना है, न कोई इन्द्रियज्ञान, केवल अज्ञान का आवरण है”मकार” इसका प्रतीक है।यहाँ आत्मा को “प्राज्ञ” कहा गया है।4. तुरीय अवस्था (मौन — अ-लक्षणीय)
यह न जाग्रत है, न स्वप्न, न सुषुप्ति।यह शुद्ध चैतन्य है, आत्मा का असली स्वरूप।इसका कोई अक्षर नहीं, इसे “ॐ के बाद की मौनता” कहा जाता है।
यही आत्मा = ब्रह्म है।
३. आत्मा और “ॐ” का सम्बन्धॐ” के अ, उ, म — आत्मा की तीन अनुभव अवस्थाओं को दर्शाते हैं।”ॐ” के मौन — आत्मा की चौथी, शुद्ध तुरीय अवस्था को दर्शाते हैं।इस तरह “ॐ” केवल ध्वनि नहीं, बल्कि आत्मा के सम्पूर्ण अनुभव-चक्र का मानचित्र है।
४. निष्कर्ष”ॐ” ध्वनि से उत्पन्न होकर आत्मा की ओर ले जाती है। आत्मा स्वयं नाद नहीं, बल्कि नाद का स्रोत शुद्ध मौन चैतन्य है साधक “ॐ” का जप करके धीरे-धीरे जाग्रत → स्वप्न → सुषुप्ति → तुरीय की यात्रा करता है और अंत में आत्मा (ब्रह्म) को जान लेता है।