हनुमान, मीरा और राधा तीनों की भक्ति अलग-अलग प्रकार की है और उनकी भक्ति का स्वरूप तथा उनका आदर्श अलग है, इसलिए सीधे तुलना करना थोड़ा सूक्ष्म है। परन्तु उनकी भक्ति की परिकथा (परीक्षा या विशेषता) पर विचार करें तो:हनुमान की भक्ति: हनुमान जी की भक्ति अत्यंत समर्पित, निःस्वार्थ और सेवा-प्रधान है। वे श्री राम की परम श्रद्धा और विश्वास के प्रतीक हैं। उनकी भक्ति में स्वामिभक्ति, शरणागत सेवा और संकट मोचन की भावना अधिक प्रमुख है। रामायण में हनुमान की परीक्षा और उनकी भक्तिपरक निष्ठा का कई बार उल्लेख है, जो अत्यंत प्रेरणादायक है। वह सदैव राम के प्रति समर्पित रहे और अपने स्वामी की सेवा को सर्वोपरि माना ��.मीरा की भक्ति: मीरा बाई की भक्ति व्यक्तिगत और प्रेमपूर्ण है। वे कृष्ण की एक अनुरागी भक्त थीं, जिनकी भक्ति भावात्मक और दिव्य प्रेम से ओत-प्रोत थी। मीरा की भक्ति न केवल आत्मीय प्रेम थी बल्कि सामाजिक और वैचारिक बंधनों को तोड़कर वह भक्ति में लीन हो गईं। उनकी भक्ति में जन्मजात लगाव, धीरज और समर्पण की भावना थी, जो भक्ति के माध्यम से मोक्ष की अभिलाषा को दर्शाती है �.राधा की भक्ति: राधा की भक्ति सबसे उच्च कोटि की दिव्य और अनुग्रहपूर्ण भक्ति मानी जाती है। वे कृष्ण के साथ उनके आत्मीय और परम अनुराग के लिए जानी जाती हैं। राधा के भक्तिमय प्रेम में सर्वस्व न्योछावर करने की भावना होती है, जो कृष्ण के प्रति सर्वाधिक ममता, समर्पण और आत्मसात है। राधा की भक्ति को योगभक्ति तथा आत्मानुभूति का सर्वश्रेष्ठ रूप माना जाता है, जो आध्यात्मिक स्तर पर प्रेम के चरम को दर्शाती है �.संक्षेप में, हनुमान जी की भक्ति सेवा और कर्तव्यपरायणता की है, मीरा की भक्ति प्रेमपूर्ण और धीरज वाली है, जबकि राधा की भक्ति अनन्य और परमात्मा के साथ संलिप्त आध्यात्मिक प्रेम की है। प्रत्येक की भक्ति अपनी जगह श्रेष्ठ और आदर्श है, जो विभिन्न प्रकार के भक्तिकाव्य और आध्यात्मिक अनुभवों का प्रतिनिधित्व करती है।इस प्रकार श्रेष्ठता का निर्णय व्यक्तिगत अनुभव, भक्ति की शैली और उद्देश्य पर निर्भर करता है, लेकिन तीनों में परम भक्ति दिखती है जो अपने-अपने तरीके से अद्भुत और दिव्य है।