रूहानी महक: जहाँ खुदा और बंदा एक हो जाते हैं

हवाओं का वो झोंका, जो तेरे नाम की खुशबू लिए आए,जैसे सहर की नर्म चादर है, जो रूह को छू जाए।शहर-से मेरा दिल थम जाता है उस एक पल में,जहाँ सिर्फ़ तेरे नूर का साया हो, और कोई सवाल नहीं।काश! यह रूमानियत यूँ ही बरसती रहे,हर साँस में तेरी याद की गूँज बसी रहे,मैं उस आहात में डूब जाऊँ, जो दिल को झकझोर दे,रिश्ते की हसरत में, वहीँ कहीं मैं खो जाऊँ।रहबर तुझमें समा जाऊँ, तेरी हुंकार बन जाऊँ,जिसमें मिटकर, मैं फिर कोई मैं न रहूँ।बस तेरे ही संग पिघल जाऊँ, तेरे ही रंग बन जाऊँ,जहाँ खुदा और बंदा, एक हों, और फासले मिट जाएँ।

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