स्थूल और सूक्ष्म शरीर का अद्भुत संगम: अनुभव की नई दृष्टि

जब स्थूल शरीर के रहते सूक्ष्म शरीर इस भौतिक दुनिया में अन्य स्थूल शरीर से मिलने निकलता है, तो दोनों स्थूल शरीरों को अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार अनुभव होता है।मूलतः स्थूल शरीर जागृत अवस्था में होता है, जिसमें व्यक्ति अपने शरीर के साथ अपनी पहचान बनाकर भौतिक वस्तुओं और अनुभवों को समझता और महसूस करता है। स्थूल शरीर पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बना होता है और इसके माध्यम से हम बाहरी कर्मों और इंद्रियों के अनुभव ग्रहण करते हैं। स्थूल शरीर को देखकर, छूकर और महसूस करके जानना संभव होता है क्योंकि यह भौतिक एवं मूर्त है।वहीं, सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर के अंदर या उसके साथ जुड़ा एक अर्ध-भौतिक शरीर होता है, जो मन, बुद्धि, अहंकार और प्राण ऊर्जा का केंद्र है। जब सूक्ष्म शरीर बाहर निकलता है, तो उसे व्यक्तिविशेष की सूक्ष्म ऊर्जा या आभा के रूप में समझा जाता है, और यह स्थूल शरीर से पतले तंतु (जैसे नाभि से जुड़ा सूक्ष्म तंतु) द्वारा जुड़ा रहता है। दोनों स्थूल शरीर जब मिलते हैं, तो वे अपनी बाहरी भौतिक संवेदना के अनुसार एक दूसरे को महसूस कर पाते हैं, परन्तु सूक्ष्म शरीर का भाव और अनुभूति अधिक मानसिक, भावनात्मक और आभासी होती है, जो स्वप्न या ध्यान के दौरान महसूस होती है।निकलने वाले स्थूल शरीर के सूक्ष्म शरीर को जो अनुभव होता है, वह भौतिक अनुभव से भिन्न होता है, वह अधिकतर सूक्ष्म गुणों जैसे हल्की ऊर्जा, आभा या आकार के रूप में होता है। मिलने वाले स्थूल शरीर को जब दूसरा स्थूल शरीर मिलता है, तो वह भौतिक रूप से उसको देख और पहचान सकता है, और अगर दोनों के सूक्ष्म शरीर मिलते हैं, तो इसका संकेत आध्यात्मिक या ध्यान की गहरी अवस्था से जुड़ा होता है।यह स्थिति साधकों और योगियों के अनुभवों में अधिक देखी जाती है, जहाँ दोनों स्थूल शरीर अपनी सीमित इंद्रिय अनुभवों से एक-दूसरे को महसूस करते हैं, और सूक्ष्म शरीरों के अनुभव और संचार ध्यान और समाधि के माध्यम से होता है। जब सूक्ष्म शरीर निकलकर स्थूल शरीर से दूर होता है, तो स्थूल शरीर में थोड़ी सुन्नता या खालीपन का अनुभव हो सकता है, और बाहर निकलने वाले सूक्ष्म शरीर में बाकी शरीरों की तुलना में अधिक उज्ज्वल, हल्का और सक्रिय ऊर्जा महसूस होती है।संक्षेप में,मिलने वाले स्थूल शरीर को दूसरे स्थूल शरीर का भौतिक रूप ही अनुभव होता है।निकलने वाले स्थूल शरीर के सूक्ष्म शरीर को बाहर निकलने की स्थिति में मानसिक-भावनात्मक तथा ऊर्जा के स्तर पर अनुभव होता है।दोनों स्थूल शरीरों के बीच संपर्क आमतौर पर भौतिक इंद्रियों से होता है, जबकि सूक्ष्म शरीरों का संपर्क मानसिक या ध्यान-आधारित होता है।यह व्याख्या भारतीय दर्शन में तीन शरीर सिद्धांत (स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर) के अनुसार की जाती है और योग-साधना के संदर्भ में विशेष रूप से प्रचलित है दोनों स्थूल शरीरों को एक साथ संवेदी अनुभव तभी होता है जब वे भौतिक स्तर पर एक-दूसरे के संपर्क में हों। स्थूल शरीर भौतिक शरीर होता है, जिसमें पाँच इंद्रियाँ होती हैं, जो संवेदी अनुभव का माध्यम होती हैं। जब दोनों स्थूल शरीर मिलते हैं, तो वे अपनी इंद्रियों के माध्यम से एक-दूसरे के रूप, स्पर्श, आवाज़ आदि को भौतिक रूप में महसूस करते हैं। अतः स्थूल शरीरों का संवेदी अनुभव मुख्यतः बाहरी और भौतिक इंद्रिय अनुभव होता है।लेकिन अगर सूक्ष्म शरीरों के संदर्भ में देखा जाए, तो सूक्ष्म शरीर मानसिक, भावनात्मक और प्राण ऊर्जा से जुड़े होते हैं, जो स्थूल शरीर के साथ चालू रहते हैं। सूक्ष्म शरीर के अनुभव और संचार सीधे स्थूल शरीरों के भौतिक इंद्रिय अनुभव से भिन्न होता है और यह ध्यान, स्वप्न, या योग के माध्यम से संभव होता है।इसलिए, भौतिक और संवेदी दृष्टि से दोनों स्थूल शरीरों को ही एक साथ अनुभव होता है, लेकिन सूक्ष्म स्तर पर अनुभव और संचार स्थूल शरीर के बाहर मानसिक-आध्यात्मिक होते हैं। इस प्रकार, दोनों स्थूल शरीर जब मिलते हैं, तो वे पारंपरिक इंद्रिय-आधारित संवेदी अनुभव करते हैं, जो आमतौर पर एक साथ संभव होता है।संक्षेप में, दोनों स्थूल शरीरों को एक साथ संवेदी अनुभव होता है क्योंकि वे भौतिक इंद्रिय संवेदनाओं के माध्यम से संपर्क में आते हैं, लेकिन सूक्ष्म शरीर का अनुभव अलग मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर होता है। इस विषय पर भारतीय योग और आध्यात्मिक ग्रंथों में भी यही वर्णन मिलता है

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