गुरु-शिष्य संपर्क मृत्यु के बाद भी प्रभावित रहता है और गहरा बना रहता है। गुरु-शिष्य का संबंध केवल एक जन्म या जीवनकाल तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह आत्मा के अनेक जन्मों तक चलता रहता है। गुरु की कृपा और ऊर्जा शिष्य के ऊपर बनी रहती है, जिससे शिष्य को आध्यात्मिक प्रगति और सुरक्षा मिलती रहती है। कई बार आध्यात्मिक अनुभवों के माध्यम से गुरु मृत शरीर छोड़ने के बाद भी शिष्य पर अपना आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु के बाद गुरु शिष्य के अंतःकरण में रहते हैं और जरूरत पड़ने पर प्रकट भी हो सकते हैं, जिससे शिष्य को आध्यात्मिक सहारा और प्रेरणा मिलती है। गुरु तत्व अमर होता है; इसलिए शिष्य के मन में सच्ची श्रद्धा होने पर गुरु की कृपा निरंतर बनी रहती है और मृत्यु इसका अंत नहीं करती। शिष्य को गुरु की शिक्षाओं पर दृढ़ रहना चाहिए, और गुरु के बिना भी उनका आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त रहता है।इसलिए मृत्यु से गुरु-शिष्य का संबंध समाप्त नहीं होता, बल्कि वह आत्मा के स्तर पर और भी अधिक गहरा होता है और गुरु की कृपा जीवन भर शिष्य के साथ रहती है इसी तरह से .आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्ण स्त्री पुरुष की आत्मा मृत्यु के बाद गुरु की मेहर (कृपा) से एक विशेष स्थान पर जाती है, जो भले ही भौतिक लोक से अलग होता है। ऐसी आत्माएँ गुरु के आशीर्वाद और संरक्षण में रहती हैं, जहां उन्हें शांति, सुरक्षा और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त होता है। साथ ही, पुनर्जन्म का चक्र भी चलता रहता है, जिससे आत्मा विभिन्न लोकों में जन्म लेती रहती है, जब तक कि वह मोक्ष या अंतिम मुक्ति प्राप्त न कर ले।कुछ धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति अपने गुरु की कृपा और मार्गदर्शन में रहता है, वह मृत्यु के बाद सामान्य यमलोक या अन्य बाधाओं से मुक्त होता है और विष्णु लोक या गुरु लोक की ओर जाता है। यह स्थान भौतिक लोक से परे होता है और वहां आत्मा विश्राम और अध्यात्मिक उन्नति करती रहती है। पुनर्जन्म की प्रक्रिया भी आत्मा के कर्मों और उसकी आध्यात्मिक प्रगति पर निर्भर करती है, जिससे वह किसी भी अन्य लोक में नए जन्म ले सकती है।इसलिए, गुरु की मेहर से संचालित आत्मा मृत्यु के बाद गुरु लोक या अन्य आध्यात्मिक लोकों में विश्राम करती है, परंतु पुनर्जन्म की यात्रा भी उसकी आध्यात्मिक प्रगति और कर्म अनुसार जारी रहती है