आत्म-सुधार का पर्व: विकारों के दहन से आत्मज्ञान तक

आज दशहरे के दिन बरसात में भीमकाय रावण के पुतले को भीगते देखा और पल भर में उनका रूप विकृत हो गया उनको जलने से पहले मेरे मन मे विचार आया कि मेरे अंदर जो विशाल भीम काय रावण पल रहा है उसे कैसे दहन किया जाए यह एक गहन आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक विचार मेरे मन मे चल रहा था तो सोचने लगा जब मैं अपने अन्दर के “जन्मजात विकार” (Innate Vices/Flaws) की बात के बारे में सोचता हूं तो दोहा याद आता है कि मुझसे बुरा इस दुनिया मे कोई नही है यहां मेरा मतलब उन शारीरिक दोषों से कम और उन स्वाभाविक आंतरिक प्रवृत्तियों या दोषों से अधिक है, जो मुझ जैसेमानव के मन में गहराई तक बसे हैं।जो हमारे​भारतीय दर्शन और मनोविज्ञान में,मेरे इन विकारो को जन्मजात कई तरह से वर्गीकृत करता है इनमे से सबसे प्रमुख वर्गीकरण निम्नलिखित हैं:​1. षड्रिपु (Shadripu) – छह आंतरिक शत्रु​ये मानव मन के सबसे मौलिक और शक्तिशाली नकारात्मक वेग (impulses) माने जाते हैं, जिन पर नियंत्रण पाना आत्म-विकास के लिए अनिवार्य है:यह एक बहुत ही गहरा और शक्तिशाली विचार है! यह विकार मुझेअपनी आंतरिक बुराइयों और कमजोरियों (भीष्मकाय रावण) को पहचानने और उन पर काबू पाने के लिए प्रेरित करता है, इससे पहले कि मैं अपनी सच्ची पहचान और क्षमता की मैं क्या हु कोअच्छी तरह से जान सकु यहां मेरा ये बताता सही है कि​आत्म-सुधार ही मेरी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए इसलिए मुझे बाहर की दुनिया को सुधारने या अपनी बाहरी पहचान के बारे में सोचने से पहले, अपने अंदर की नकारात्मक प्रवृत्तियों (जैसे अहंकार, क्रोध, लालच, आलस्य, या आत्म-संदेह) से लड़ना होगा।ओर उनको जड़ से मिटाना होगा ताभि मेरे अंदर के भीम।काये रावण पर मैं विजय पा सकता हु यहि मेरे लिए विकारो को दूर करने की ​सच्ची पहचान होगी : एक बार जब तक मैं अपनी आंतरिक बाधाओं को दूर कर लेने की सोच कर मनन करता हु , तभी मैं अपनी स्पष्टता के साथ विकारो को सकता हु क्योकि मैं वास्तव में कौन हैं और इस जग में जन्म लिया है तो मेरा वास्तविक उद्देश्य क्या है।ये विचार​भारतीय दर्शन और मनोविज्ञान के कई पहलुओं से मेल खाता है, जो आत्म-शुद्धि और आत्म-बोध पर जोर देता हैं।काम Kama अनियंत्रित वासना या तीव्र इच्छाएँ।क्रोध Krodha गुस्सा, प्रतिशोध और उत्तेजना।लोभ Lobha लालच, अत्यधिक संग्रह की इच्छा।मोह Moha आकर्षण या लगाव (Attachment), जिसके कारण हम भ्रम में पड़ते हैं।मद Mada अहंकार या घमंड (Pride/Arrogance)।मत्सर Matsarya ईर्ष्या या द्वेष (Jealousy/Envy)।त्रिदोष (Tridosha) / त्रिमल (Trimala)​बौद्ध धर्म और कुछ अन्य भारतीय दर्शनों में, ये तीन दोष मानव दुःख और संसार (सर्किल ऑफ़ बर्थ एंड डेथ) के मूल कारण माने जाते हैं। इन्हें अक्सर ‘तीन विष’ (Three Poisons) भी कहा जाता है:​राग (Raga): लालसा, आसक्ति (Greed, Lust, Attachment)​द्वेष (Dvesha): घृणा, वैर (Hatred, Aversion)​मोह (Moha): अज्ञान, भ्रम (Delusion, Ignorance)​3. मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से​आधुनिक मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण (Psychoanalysis) इसे मानव की बुनियादी प्रवृत्तियों (Basic Instincts) के रूप में देखता है, जो जन्म से ही होते हैं, लेकिन उनका रूप और अभिव्यक्ति वातावरण से प्रभावित होती है।​अहम्-केंद्रितता (Ego-centricity): स्वयं को प्राथमिकता देना और अपनी जरूरतों को पूरा करने की मूल प्रवृत्ति।​आक्रामकता (Aggression): अस्तित्व (Survival) और आत्म-रक्षा के लिए एक सहज प्रवृत्ति, जो अनियंत्रित होने पर हिंसा या क्रोध का रूप ले लेती है।​भय/चिंता (Fear/Anxiety): खतरे से बचने के लिए एक जन्मजात प्रतिक्रिया, जो अनियंत्रित होने पर मानसिक विकार बन जाती है।मैंने मेरे अंदर जिस “भीष्मकाय रावण” की बात कर रहा हु , वह मेरे इन्हीं जन्मजात विकारों का एक समेकित रूप है, जिस पर विजय प्राप्त करके ही इंसान अपने वास्तविक स्वरूप को जान पाता है। ओर आध्यात्मिक राह पर अग्रसर हो सकता है

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