गुरु अपने मनचाहे शिष्य को शक्तिपात इसलिए करते हैं ताकि उस शिष्य को दिव्य ऊर्जा, ज्ञान और आत्मज्ञान की जागृति मिल सके। शक्तिपात एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें गुरु अपनी आध्यात्मिक शक्ति, कुंडलिनी ऊर्जा या दिव्य चेतना को शिष्य में स्थानांतरित कर देता है। इसका उद्देश्य शिष्य के भीतर सुप्त आध्यात्मिक शक्तियों का जागरण करना, उसकी साधना को सहज और तेज़ बनाना, और उसे आत्मा के उच्चतम ज्ञान की ओर ले जाना होता है।संत शक्ति का संचय करके इच्छित शिष्य को शक्तिपात इसलिए देते हैं क्योंकि:शिष्य को आध्यात्मिक उन्नति के लिए गुरु की कृपा और ऊर्जा का संचार जरूरी होता है।सभी साधकों की साधना एवं जागृति स्वचालित या सहज नहीं होती, इसलिए गुरु की कृपा से वह प्रक्रिया सरल और तीव्र हो जाती है।शक्तिपात एक प्रकार का आध्यात्मिक उपकार है, जिसमें गुरु अपने तप और साधना की पूंजी से उस ऊर्जा का स्थानांतरण करता है।इसे केवल योग्य, श्रद्धावान और साधनानिष्ठ शिष्य को ही दिया जाता है क्योंकि यह एक बड़ी आध्यात्मिक जिम्मेदारी और ऊर्जा का प्रवाह होता है।यह शिष्य को गुप्त आध्यात्मिक केंद्रों में शक्तियां जागृत करने और मार्ग पर अग्रसर करने का तरीका होता है।शक्तिपात के द्वारा शिष्य के मन, शरीर और आत्मा तीनों में परिवर्तन आता है, जिससे ध्यान, भक्ति और ज्ञान की अवस्था गहरी हो जाती है। यह गुरु का उदार और निस्वार्थ भाव होता है ताकि शिष्य की शक्तियां खुल सकें और वे आंतरिक प्रकाश के अनुभव में आगे बढ़ सकें।इसलिए, संत या गुरु शक्तिपात कर अपने दायरे में शिष्य को इसलिए लेते हैं क्योंकि वे उसकी आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं, उसे जन्म-जन्मांतर के कर्मों से मुक्त करना चाहते हैं, और उसे सच्चे ज्ञान और मोक्ष मार्ग पर अग्रसर करना चाहते हैं। यह पूरी प्रक्रिया गुरु-शिष्य परंपरा का एक अनिवार्य और पावन अंग है जिसमें गुरु की ऊर्जा और प्रेम शिष्य की आत्मा में प्रवेश करता है, जिससे उसका जीवन आध्यात्मिक रूप से पूर्ण और समृद्ध होता है।इस प्रकार, शक्तिपात से गुरु शिष्य को अपने आध्यात्मिक दायरे में लेते हैं ताकि वह उसे प्रकाश, शक्ति और मुक्ति की ओर ले जा सके। यह केवल एक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार नहीं है, बल्कि एक गहरा सत्कर्म और गुरु की कृपा की अभिव्यक्ति है।