“मैं की मटकी क्या फूटी, हृदय मक्खन हो गया” एक आध्यात्मिक और भावनात्मक अभिव्यक्ति है, जिसमें मटकी फूटने का अर्थ है अहंकार (मैं या ego) का टूटना। जब यह मटकी फूटती है, तो हृदय मक्खन हो जाता है, अर्थात् हृदय कोकरमल, कोमल और सुखद अनुभव मिलने लगता है। यह स्थिति सरलता, सहजता, आनंद, और संतोष की होती है, जहां इच्छाएं नियंत्रित हो जाती हैं और मन संतोषी हो जाता है। इसे ईश्वर की कृपा के रूप में भी देखा जाता है, जिससे आत्मा में शांति और मधुरता आ जाती है, जैसे गोपियों का मन मधु वन (स्वर्ग जैसा स्थान) हो जाता है।यह वाक्य भक्ति, आत्मसमर्पण और अहंकार से मुक्त होने की स्थिति को दर्शाता है, जिसमें व्यक्ति का मन ईश्वर के प्रेम और कृपा से पूर्ण आनंद में डूब जाता है। संक्षेप में, यह एक आध्यात्मिक जागरण और ईश्वर के साथ गहरे प्रेम का सूचक है, जब अहंकार टूटता है तो हृदय मक्खन की तरह पिघलकर प्रेम और शांति से भर जाता है