यह बात अत्यंत गहरी और सटीक है। बाहरी सुंदरता और शारीरिक आकर्षण का मूल्य तभी तक है, जब तक मनुष्य का दिल — उसका आंतरिक स्वभाव, भावना और नीयत — पवित्र और सुधारित हो।इस कथन की जड़ पैग़ंबर मुहम्मद की एक मशहूर हदीस में है, जिसमें फरमाया गया है:”आदमी के जिस्म में एक लोथड़ा (मांस का टुकड़ा) है, अगर वह ठीक हो जाए तो पूरा जिस्म ठीक हो जाता है, और अगर वह खराब हो जाए तो पूरा जिस्म खराब हो जाता है — और जान लो, वह है ‘दिल’ (क़ल्ब)।”इस हदीस का तात्पर्य यह है कि इंसान की असली ज़िंदगी, उसकी नीयत और उसका चरित्र उसी दिल की हालत पर निर्भर करते हैं।
अगर दिल सख्त, घमंडी या नफरत से भरा है, तो बाहरी आदाब, रूप, और इबादतें भी अधूरे हो जाते हैं।
लेकिन जब दिल नर्म, दयालु और ईमानदार होता है, तो वही व्यक्ति अपने पूरे वजूद को सुंदर बना देता है — न केवल इंसानों के सामने बल्कि खुद अल्लाह के नज़दीक भी।संक्षेप में,
दिल की इसलाह (सुधार) ही असली इबादत है।
और जैसा कहा गया है — “जो अपने दिल को पाक कर लेता है, वही सच्चा इंसान बनता है