मेरी सोच व अनुभव के अनुसार जब हम गहन समाधि में स्थिर हो शुण्य महसूस करते है और चारो तरफ के वातावरण से मुक्त हो उस अवस्था नाद सुनते हुवे गहन समाधि में जा कर जव्म को समाधि की अवस्था मे ली कर लेते है उस समय हमारी स्वास लेने की गति कम हो जाती है और इसी कारण हम।लंबे समय तक जीवित अवस्था मे रहते है यहांसमाधि की अवस्था में सांस की गति कम और छोटी होने का मुख्य कारण है शरीर और मन की अत्यंत गहरी शांति व विश्राम की स्थिति। जब कोई व्यक्ति समाधि में होता है, तो उसका शरीर और मन पूरी तरह स्थिर और निष्क्रिय रहते हैं। ऐसे में शरीर की ऊर्जा तथा ऑक्सीजन की आवश्यकता बहुत कम हो जाती है क्योंकि शारीरिक क्रियाएँ न्यूनतम होती हैं।ध्यान या समाधि में, सांस की संख्या कम हो जाती है क्योंकि शरीर के मेटाबोलिक क्रियाकलाप धीमे हो जाते हैं, जिससे ऊर्जा की कम खपत होती है। यह स्थिति निर्जीव अवस्था से भिन्न होती है, क्योंकि सांस की गहराई और आवृत्ति कम होने के बावजूद शरीर जीवित और सजग रहता है। सांस की गति कम होने से हृदय की धड़कन भी धीमी होती है, और रक्तसंचार जैसे शारीरिक प्रक्रियाएँ न्यूनतम स्तर पर नुक्सान रहित ढंग से चलती रहती हैं।आयुर्वेद और योग के अनुसार, गहरी समाधि में ससुम्ना नाड़ी के माध्यम से बहुत ही धीमी और सूक्ष्म सांस चलती है, जो शरीर की ऊर्जा की बचत करती है। यह धीमी सांसें विश्राम की गहराई और मन की स्थिरता को दर्शाती हैं। शरीर इतने निष्क्रिय होते हुए भी पूरी तरह शक्ति और जीवनधारा से जुड़ा रहता है। इसलिए सांस की गति छोटी और कम हो जाती है क्योंकि अतिरिक्त ऑक्सीजन की मांग नहीं रहती और मन-शरीर दोनों पूर्णतः शांत होते हैं।यह विज्ञान और योग की व्याख्या दोनों में समान है कि समाधि में सांस छोटी इसलिए होती है क्योंकि शरीर शिथिलता की उच्चतम स्थिति में होता है, जहां ऊर्जा की खपत न्यूनतम हो जाती है और शरीर को कम ऑक्सीजन की जरूरत होती है। इसी कारण सांस की गति कम हो जाती है और सांसें छोटी हो जाती है.समाधि में सांस धीमी होने के फिज़ियोलॉजिकल कारण मुख्य रूप से शरीर और मस्तिष्क के शांति और विश्राम की गहरी अवस्था से जुड़े हैं। जब व्यक्ति समाधि में जाता है, तो पैरासिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय हो जाता है, जो शरीर को आराम और पाचन की स्थिति में ले जाता है। इस अवस्था में शरीर का मेटाबोलिज्म कम हो जाता है, जिससे ऑक्सीजन की आवश्यकता घटती है और सांस की गति स्वाभाविक रूप से धीमी हो जाती है।सांस धीमी होने की इस स्थिति को योग में सुषुमना नाड़ी से सांस चलने का अनुभव माना जाता है, जहां सांसें सूक्ष्म और गहरी होती हैं। ध्यान के दौरान शारीरिक क्रियाएँ न्यूनतम हो जाती हैं, हृदय की गति भी धीमी हो जाती है, और रक्त संचार की दर कम हो जाती है क्योंकि ऊर्जा की खपत अत्यंत कम होती है। यह फिज़ियोलॉजिकल बदलाव यह सुनिश्चित करते हैं कि शरीर कम ऑक्सीजन की मांग करते हुए भी जीवित और सक्रिय बना रहे।इसके अतिरिक्त, समाधि की अवस्था में मस्तिष्क की गतिविधियां भी शांत होती हैं, जिससे न्यूरोलॉजिकल स्तर पर भी शरीर विश्राम की गहरी अवस्था में रहता है। इसीलिए सांस की गहराई और आवृत्ति दोनों कम हो जाती हैं, लेकिन यह स्वस्थ और नियंत्रित स्थिति होती है, जो अत्यधिक शिथिलता और आंतरिक शांति को दर्शाती है।इस तरह सांस धीमी होना समाधि की गहरी अवस्था में शरीर की ऊर्जा बचत, न्यूनतम ऑक्सीजन आवश्यकता, और मस्तिष्क-शरीर की सामंजस्यपूर्ण विश्राम की व्याख्या करता है