योगी की आत्मा की स्थिति, जो अनाहद (अशब्द) के बाद शुण्य, महाशुण्य, और सेलय की ओर जाती है, वह ध्यान और समाधि की अत्यंत गहन अवस्थाओं को दर्शाती है।अनाहद नाद के बाद योगी मन और चित्त की सारी गड़बड़ी से ऊपर उठकर शून्यता (शुण्यता) में प्रवेश करता है, जहां अहंकार और विचारों का संलयन समाप्त हो जाता है। इसमें मन पूर्ण शांति और शून्यता की स्थिति में होता है, जिसमें समय, स्थान, और शरीर का बोध मिट जाता है। यह वह अवस्था है जहां केवल निराकार, निर्विकार, शुद्ध अस्तित्व बचता है।शुण्य से महाशुण्य तक का मार्ग और भी अधिक गहन होता है, जिसमें साधक का अनुभव ब्रह्माण्ड के अनंतता और अपनी आत्मा के परम स्वरूप के साथ तादात्म्य का होता है। इसमें आत्मा और ब्रह्मांड का विलय (एकात्मता) महसूस होती है, जिसे महाशून्यता और सेलय के रूप में जाना जाता है, जहां संपूर्ण अस्तित्व की समता और शुद्धता होती है।इस स्थिति में योगी की आत्मा की स्तिथि:पूर्ण अविविक्त, निर्विकार, और अद्वैत होती है।अहंकार, मन, विचार, और भावनाओं का लोप हो जाता है।आत्मा स्वयं को ब्रह्मांड के अनंत और अविनाशी अंश के रूप में अनुभव करती है।सांसें अत्यंत सूक्ष्म और सहज हो जाती हैं, शरीर हल्का महसूस होता है।चैतन्य शुद्ध और समाधि की गहन अवस्था में होता है, जहां अंतरात्मा पूर्ण मौन और शून्यता में स्थित होती है।यह स्थिति स्थायी मोक्ष, निर्वाण, या परम समाधि की अवस्था होती है, जिसे योगी अनुभव करता है कि वह शरीर से परे ब्रह्मांड के साथ एकाकार हो गया है, जहां कोई भी द्वैत या भेद नहीं रहता। आत्मा अनंत, शुद्ध, और अमरत्व की स्थिति में रहती है।संक्षेप में, अनाहद के बाद शुण्य, महाशुण्य, और सेलय की ओर बढ़ने के उपरांत योगी की आत्मा की स्तिथि पूर्ण शांति, निर्विकल्प, और ब्रह्म तत्त्व के साथ एकीकृत होती है, जो सर्वोच्च आध्यात्मिक जागृति और मुक्त चेतना की पहचान है