सूफ़ी तसव्वुफ़ (रूहानियत) में नफ्स़ की चार मंज़िलों का बहुत सुंदर और सटीक सार प्रस्तुत करता है। नफ्स़ या मन को शुद्ध करने की यह यात्रा आत्मा के विकसित होने की प्रतीक है—जहाँ पाप की प्रवृत्ति से लेकर परम-आत्मिक शांति की अवस्था तक का सफर दिखाया गया है।नीचे यह क्रम संक्षेप में स्पष्ट किया जा सकता है:नफ्स़ की चार अवस्थाएँ (रूहानियत में)नफ्स़-ए-अम्मारा (Nafs al-Ammarah)यह वह अवस्था है जब इंसान पूरी तरह सांसारिक इच्छाओं, वासनाओं और आत्मकेन्द्रित प्रवृत्तियों में फँसा होता है। इसमें नफ्स़ व्यक्ति को बुराई, पाप और अज्ञान की ओर खींचता है। यह अंधकार का चरण है।नफ्स़-ए-लव्वामा (Nafs al-Lawwamah)इस अवस्था में व्यक्ति भीतर से जागरूक होता है—वह गलती के बाद खुद को मलामत करता है, पश्चाताप करता है। यह अंतरात्मा की पुकार का प्रारंभिक बिंदु है। यहाँ गुरु या मुर्शिद का प्रभाव जीवन में प्रवेश करता है।नफ्स़-ए-मुल्हिमा (Nafs al-Mulhamah)यह अवस्था पवित्रता का आरंभ है। यहाँ नफ्स़ बुराई करने से रोकता है और व्यक्ति को सद्गुण, इबादत और आत्मसंयम के मार्ग पर चलाता है। यह प्रेरणा का चरण है—जहाँ चेतना दिव्य प्रेरणा से सहारा पाती है।नफ्स़-ए-मुतमईन्ना (Nafs al-Mutma’innah)यह वह अवस्था है जब मन और आत्मा को पूर्ण संतोष व दिव्य स्थिरता प्राप्त हो जाती है। व्यक्ति अल्लाह या ईश्वर की रज़ा (आनंद) में स्थित हो जाता है। यह विलायत या ईश्वर से मैत्री की स्थिति है। सूफ़ी दृष्टि में यही मक़सद-ए-हयात (जीवन का परम उद्देश्य) है।नफ्स़ का तज़किया (शुद्धिकरण) केवल बाहरी कर्मों या रीति-रिवाजों से नहीं बल्कि रूहानी इल्म, ध्यान, और मुर्शिद की निगाह से होता है। वह प्रक्रिया आत्मज्ञान से जुड़ती है—जैसे योग में “चित्त-वृत्ति निरोध” या उपनिषदों में “आत्म-साक्षात्कार” का मार्ग बताया गया है।नफ्स़ की चार अवस्थाएँ (रूहानियत में)नफ्स़-ए-अम्मारा (Nafs al-Ammarah)यह वह अवस्था है जब इंसान पूरी तरह सांसारिक इच्छाओं, वासनाओं और आत्मकेन्द्रित प्रवृत्तियों में फँसा होता है। इसमें नफ्स़ व्यक्ति को बुराई, पाप और अज्ञान की ओर खींचता है। यह अंधकार का चरण है।नफ्स़-ए-लव्वामा (Nafs al-Lawwamah)इस अवस्था में व्यक्ति भीतर से जागरूक होता है—वह गलती के बाद खुद को मलामत करता है, पश्चाताप करता है। यह अंतरात्मा की पुकार का प्रारंभिक बिंदु है। यहाँ गुरु या मुर्शिद का प्रभाव जीवन में प्रवेश करता है।नफ्स़-ए-मुल्हिमा (Nafs al-Mulhamah)यह अवस्था पवित्रता का आरंभ है। यहाँ नफ्स़ बुराई करने से रोकता है और व्यक्ति को सद्गुण, इबादत और आत्मसंयम के मार्ग पर चलाता है। यह प्रेरणा का चरण है—जहाँ चेतना दिव्य प्रेरणा से सहारा पाती है।नफ्स़-ए-मुतमईन्ना (Nafs al-Mutma’innah)यह वह अवस्था है जब मन और आत्मा को पूर्ण संतोष व दिव्य स्थिरता प्राप्त हो जाती है। व्यक्ति अल्लाह या ईश्वर की रज़ा (आनंद) में स्थित हो जाता है। यह विलायत या ईश्वर से मैत्री की स्थिति है। सूफ़ी दृष्टि में यही मक़सद-ए-हयात (जीवन का परम उद्देश्य) है।नफ्स़ का तज़किया (शुद्धिकरण) केवल बाहरी कर्मों या रीति-रिवाजों से नहीं बल्कि रूहानी इल्म, ध्यान, और मुर्शिद की निगाह से होता है। वह प्रक्रिया आत्मज्ञान से जुड़ती है—जैसे योग में “चित्त-वृत्ति निरोध” या उपनिषदों में “आत्म-साक्षात्कार” का मार्ग बताया गया है।