आज अभी मुझे नींद नही
आ रही थी कमर में दर्द सर में दर्द था समय भी ग्यारह बजे चुके थे सोचा कि कुछ देर ध्यान करलू ओर ध्यान में बैठ गया लगा मि शरीर हल्का हो गया है और कोई प्रकाश रूपी लाईन मेरे अंदर से निकल।कर कणों।में बदलती हुई ब्रांड की ओर जा रही है इन कणों।के प्रकाश सुनहरी रंग का था जो मिझे अंधेरे से चीरता हुवा उस स्थान पर ले जा रहा था जहाँ एक बिंदु जो गोल्डन थी उसके चारों तरह अरबो इतने बसरिक कण जो उस कान जो दिख रहा था उससे भी छोटे पर गोलाकार में हर कण घूम रहा था और बिंदु से दूर जिस तरह से चुम्बक के चारो तरफ कण चिपके होते है पर अति सूक्ष्म जो नजर तो आ रहे थे पर समाधि मे बन्द असांखे महसूस कर रही थी कि अरबो कण उस तरफ आकाश्रित हो रहे है और उस बिंदु के चिपकना छह रहे है और जो चुमबकीय कण नजर आते है ऐसे ही उस सतलोक से ऊपर लोक में अनु से बारीक करोड़ो गुना सुनहरी कण एक बिंदु रूपी।कण के चारो ओर गमन कर ।रहे है नजर आ रहे थे और उन कणों की संख्या निरन्तर बढ़ रही थी जो।कह नजर आ रहे थे वो उस बिंदु रूपी कण से करोड़ो गुना सुक्षम थे जिनकी गिनती बढ़ती जाती है ब्रह्मण्ड में ये कहा है वहः सतलोक है या उस के ऊपर लोक में “अनु से बारीक करोड़ों गुना सुनहरी कण एक बिंदु रूपी” और उसके चारों ओर गमन लगातार कर रहे थे और बिंदु उन्हें अपनि ओरआकर्षित कर रहा था
जो ब्रह्मांड की बढ़ने की बात नजरमें नजर आ रहे थे । इसे आध्यात्मिक और ब्रह्मांडीय दृष्टि से समझने के लिए शास्त्र, वेद, पुराण और आधुनिक ब्रह्मांड सिद्धांत दोनों का संदर्भ मैन तलाश करने की कोशिश की जो उपयोगी साबित हुई ।सतलोक से ऊपर लोक और ब्रह्मांड के आकार, जिसमें अत्यंत सूक्ष्म बिंदु-रूप कणों का संदर्भ होता है, इस प्रकार की अवधारणा वैदिक ज्ञान और संतमत की विभिन्न परंपराओं में मिलती है। जहां “हिरण्यगर्भ” (सुनहरी गर्भ/कण) का विवरण मिलता है जो स्थूल सृष्टि का आधार बनता है। इसे ‘बिंदु’ के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मांड की अति-सूक्ष्म और अत्यंत उच्चतर आध्यात्मिक वास्तविकता को सूचित करता है। यह बिंदु अनंत विस्तार का कारण और स्रोत है।इसके चारों ओर “कणों का होना आध्यात्मिकता और अदृष्ट शक्तियों की उपस्थिति होने की कल्पना कराता है, जो अनेक लोकों और ब्रह्मांडों की संख्या में इजाफा करता है। वेद और पुराणों में ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विस्तार एवं बहुल लोकों का वर्णन मिलता है, जैसे कि महाविस्फोट से प्रकृति की उत्पत्ति, विभिन्न लोकविशेषों में अनंत जीवों और कणों की व्यापकता।इस दृष्टिकोण से समझें तो सतलोक से ऊपर लोकों की चर्चा उन अत्यंत सूक्ष्म और उच्चतर आध्यात्मिक स्तरों की है, जहां ब्रह्मांड के भी सूक्ष्म और अनंत बिंदु सामूहिक रूप से उच्चतर चेतना और परम आनंद के स्वरूप होते हैं। यह ब्रह्मांडीय विस्तार जो क्रमशः बढ़ता है, वह ब्रह्माण्ड की व्यापकता और अतुलनीय व्याप्ति को दर्शाता है।संक्षेप में, सतलोक से ऊपर लोकों में “अनु से बारीक करोड़ों गुना सुनहरी कण” का अर्थ है ब्रह्मांडीय संपूर्णता का सूक्ष्मतम, आध्यात्मिक और सुनहरी स्वरूप, जिसके चारों ओर दिखना या अनुभव का होना उसकी गूढ़ता और अनंतता का संकेत है। यह विस्तृत ब्रह्मांड कर्म और संस्था के शास्त्रीय और आध्यात्मिक विवेचन से प्रमाणित हैसुनहरी कण वाली अवधारणा और ब्रह्मांड की सूक्ष्मतम और अत्यंत व्यापक रचना का वर्णन मुख्यतः पूज्य कबीर साहेब और पूर्ण संत गरीबदास जी महाराज की वाणियों में मिलता है। संत कबीर जी के पद और वचनों में इस सृष्टि रचना के रहस्यों का गहन विवेचन है, जहां उन्होंने सिद्धांत सहित बताया कि ब्रह्मांड की रचना एक बिंदु जैसी स्थिति से प्रारंभ होती है, जिसे सुनहरी कण के रूप में समझा जा सकता है।कबीर सागर जैसे सद्ग्रंथों में इस प्रकार की अवधारणा विस्तार से दी गई है, जहां परमात्मा के प्रकाश और सृष्टि के निर्माण का वर्णन है। इस स्थिति में वहम का होना आध्यात्मिक भ्रमों और लोकों की बढ़ती संख्या का सूचक माना गया है।इस प्रकार की अवधारणा कबीर साहेब और संत गरीबदास जी के आध्यात्मिक ग्रंथों और उनकी वाणी में प्रमाणित है, जिन्हें “पांचवां वेद” भी कहा जाता है क्योंकि इनमें वेदों के समान ही गूढ़ सत्य और ब्रह्मांडीय रहस्यों का उल्लेख मिलता हैकबीर सागर में “सुनहरी कण” जैसी गूढ़ ब्रह्मांडीय अवधारणा का विशेष और मूल श्लोक सीधे तौर पर भले ही शब्दशः न मिले, लेकिन इसके समवेत अर्थ और विवरण कबीर सागर के अध्याय “मुक्ति बोध” (पृष्ठ 63) और “सृष्टि रचना” के खंडों में मिलते हैं।इन श्लोकों में परमात्मा की ज्योति स्वरूप उत्पत्ति, अक्षर पुरुष और काल निरंजन की स्थिता, तथा माया और ब्रह्मांड की रचना का गूढ़ वर्णन है जो “सुनहरी कण” के अर्थ को दर्शाता है। उदाहरण स्वरूप:”पहले ज्योति स्वरुपी निरंजन की उत्पत्ति की एक अंडे में। … सतलोक में कीन्हा दुराचारी। काल निरंजन दीन्हा निकारी।”और”सतलोक से प्रारंभ हुई सृष्टि रचना की संपूर्ण जानकारी पवित्र सूक्ष्म वेद में वर्णित है। इसमें वर्णन है कि सर्वोच्च ईश्वर ने अपनी शब्द शक्ति से समस्त लोकों और प्राणियों की उत्पत्ति की थी।”ये श्लोक और उनके भाव कबीर सागर के अध्यायों में विस्तार से बताए गए हैं, जो सुनहरी कण के रूप में ब्रह्माण्ड की अति-सूक्ष्म और दिव्य रचना की व्याख्या करते हैं।इस विषय में संत रामपाल जी महाराज के व्याख्यान भी प्रामाणिक संदर्भ देते हैं, जो कबीर सागर के श्लोकों की विस्तृत व्याख्या करते हैं.संक्षेप में, मूल श्लोक ‘मुक्ति बोध’ तथा ‘सृष्टि रचना’ के अध्यायों में स्थित हैं, जहां ब्रह्मांड के अति सूक्ष्म बिंदु रूपी दिव्य कणों और उनके चारों ओर के वहम का वर्णन मिलता है।