परम से परे: परप्रमातृत्वभाव की अद्वैत अनुभूति

परप्रमातृत्वभाव का अर्थ है परमात्मा से परे या उस से भी उच्चतर और व्यापक परम सत्ता की भावना या दृष्‍टि। यह भाव व्यक्ति के आध्यात्मिक अनुभव या दार्शनिक चिंतन में उस सर्वोच्च सत्ता के प्रति गहन सम्मान, भक्ति और समझ को दर्शाता है जो सभी सीमाओं से परे है। इसमें परमतत्त्व को केवल एक परमात्मा के रूप में नहीं बल्कि उससे भी ऊपर के, सर्वव्यापी और परमशक्तिमान स्वरूप के रूप में देखा जाता है।यह भाव भारतीय दर्शन, विशेषकर अद्वैत और उपनिषदों में गूढ़ रूप से मिलता है, जहां ब्रह्म को परतः पर माना जाता है; यानी वह जो सभी से परे है, जिसके पार और कोई नहीं है। परप्रमातृत्वभाव में साधक उस उच्चतम तत्व की अनुभूति करता है जो कुदरती, व्यक्तिगत या ईश्वर के सामान्य समझ से भी परे है।इसका उपयोग भक्ति, ज्ञान, और आत्मा की सर्वोच्च पहचान में होता है, जो साधक को सीमित जीवन और शरीर की अनुभूतियों से ऊपर उठाकर आत्मा का परब्रह्मात्मा स्वरूप समझने में सहायता करता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *