जप योग: वायु के कम्पन से आत्मा की तरंग तक

जप योग में वायुमंडल में आवाज की गति और उसके कम्पन्न का अध्यात्म से संबंध गहरा है। ये जप जो गुरु देव के द्वारा हमको दिए जाते है सब अर्जित होते है और इनमें इतनी शक्ति होती है जो अनुभव की जाती है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, वायु में ध्वनि का वेग लगभग 332 से 346 मीटर प्रति सेकंड होता है, जो तापमान और अन्य परिस्थितियों पर निर्भर करता है। निर्वात में ध्वनि नहीं चल सकती क्योंकि वहां ध्वनि के प्रसार के लिए माध्यम नहीं होता .आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, जप योग में ध्वनि या नाद (आवाज) का कम्पन्न महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जप के विभिन्न स्तर होते हैं: वैखरी (स्पष्ट उच्चारण), उपांशु (अल्प वायु के साथ जप), और मानसिक जप (वायु रहित)। प्रारंभिक वैखरी जप में वायु का उपयोग और उसके कंपन की स्पष्ट अनुभूति होती है, जबकि मानसिक जप में वाह्य वायु की आवश्यकता नहीं रहती, जो कि गहन ध्यान और समाधि की अवस्था होती है। इस प्रक्रिया में जप करने वाले की वायु की गति विलक्षण हो जाती है, और अंततः ध्यान की उच्चतम स्थिति प्राप्त होती है, जिसमें बाहरी वायुमंडल से आंतरिक ऊर्जा और नाद का अनुभव होता है। यह ध्यान और जप योग के सम्मिलित अभ्यास द्वारा ही संभव होता है, जो साधक को आकाश मंडल (अलौकिक क्षेत्र) तक ले जाता है .इस प्रकार, वायुमंडल में आवाज की गति का कम्पन्न जप योग की साधना का माध्यम है, जो बाहरी वायु के कंपन से आंतरिक सूक्ष्म नाद की अनुभूति और अंतर्मुखी शक्ति के संचरण में सहायक होता है। जप योग में यह कम्पन्न अध्यात्मिक जगत में प्रवेश का द्वार बनता है, जहां साधक का ध्यान शक्तिशाली और निरन्तर होता है, और यही परम तत्त्व की अनुभूति की अवस्था की ओर ले जाता है।अतः जप योग में वायु में आवाज की गति का कम्पन्न न केवल भौतिक ध्वनि का संचरण है, बल्कि यह आध्यात्मिक चेतना के विकास, ध्यान की गहराई, और आंतरिक नाद की अनुभूति की प्रक्रिया भी है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *