संत द्वारा तत्वज्ञान दिए जाने से शिष्य में गहरे आध्यात्मिक और मानसिक बदलाव होते हैं। तत्वज्ञान शिष्य को आत्म-ज्ञान, मन की शुद्धि और वास्तविकता की समझ प्रदान करता है जिसके कारण उसका जीवन सार्थक, शांत और समर्थ बनता है। तत्वज्ञान से शिष्य की बुद्धि भ्रम और मोह से मुक्त होकर एकाग्र हो जाती है, जिससे वह परमात्मा की भक्ति और आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर होता है।संत से तत्वज्ञान प्राप्ति के बाद शिष्य में बदलावशिष्य का मन राग-द्वेष से मुक्त होता है और उसमें मानसिक शांति आ जाती है।वह अपने भीतर की सच्चाई को समझने लगता है, जिससे उसके कृत्य और आचरण में सुधार होता है।गुरु की कृपा से शिष्य के अंदर जागृति होती है और वह अपने जीवन के उद्देश्य को समझ पाता है।शिष्य को जीवन के संकटों और दुखों से निपटने की क्षमता मिलती है और वह भयमुक्त हो जाता है।तत्वज्ञान से शिष्य की साधना सशक्त होती है और वह परमात्मा के प्रति समर्पित हो जाता है।तत्वज्ञान के लाभजीवन में विकृति (असंतुलन) के बीच समता स्थापित होती है।यह राग-द्वेष तथा अहंकार के विनाश का कारण बनता है।जीवन में सच्चे धर्म और नैतिक मूल्य की नींव मजबूत होती है।मन और चित्त की शुद्धि होती है जिससे शांति, आनंद और संतोष की प्राप्ति होती है।व्यक्ति अपने दुखों से मुक्त होकर आत्म-स्वरूप को समझ पाता है।तत्वज्ञान से जितना अधिक आत्मबोध होता है, उतना ही व्यक्ति संसार के मोह-बंधन से मुक्त होता है।तत्वज्ञान के सहारे व्यक्ति अपने कर्मों को समझकर उन्हें सुधार सकता है और जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाता है।इस प्रकार तत्वज्ञान गुरु-शिष्य संवाद की एक गूढ़ प्रक्रिया है जो शिष्य को केवल ज्ञान ही नहीं प्रदान करती, बल्कि उसे आध्यात्मिक पुनर्जन्म एवं जीवन में स्थिरता और आनंद की स्थिति प्रदान करती है। संत के ज्ञान से शिष्य का हृदय, मन, और जीवन पूरी तरह बदल जाता है और उसे आध्यात्मिक ऊर्जा जो गुरु द्वारा दी गई है से परमानन्द की प्राप्ति होती है। यह न केवल ज्ञान का प्रसार है, बल्कि जीवन की व्यावहारिक और आध्यात्मिक क्रांति का माध्यम है तत्वज्ञान अभ्यास के लिए शुरूआती दैनिक साधनाएँ इस प्रकार हो सकती हैं:नियमित ध्यान और मानसिक एकाग्रता – प्रतिदिन कम से कम 15-30 मिनट ध्यान लगाना चाहिए। इस ध्यान में आत्मा के स्वरूप और तत्वों का विचार करना चाहिए जिससे मन स्थिर और शुद्ध होता है।श्वास पर नियंत्रण ध्यान में। सांस की गति और नियंत्रण से मन को नियंत्रित करके चित्त की शांति स्थापित करनी चाहिए। प्राणायाम से मानसिक ऊर्जा संतुलित होती है और तत्वज्ञान की समझ बढ़ती है।सत्संग और गुरु वचन श्रवण – संत या गुरु के तत्वज्ञान संबंधी वचन सुनना और समझना, जिससे विचारों का निर्माण हो और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़े।स्वयं की आत्म-परीक्षा (स्वाध्याय) – दिनभर के कर्मों और विचारों का अवलोकन और आत्म-विश्लेषण करना, जिससे व्यक्ति अपने भीतर के भ्रम और मोह को समझ सके।सत्प्रेरणा और साधना की भावना बनाए रखना – सरल जीवनशैली अपनाकर, अहिंसा, सत्य और संयम का अभ्यास करना।मंत्र जप और भावनात्मक पुनरावृत्ति – ‘सोऽहम्’ जैसे तत्वज्ञान साधना के मंत्रों का जप करना जिससे आत्मा का साक्षात्कार होता है।ध्यान की भावना से तत्वों का चिंतन – तत्वों का निरंतर विचार, जैसे जीवन की वास्तविकता को समझना और उसे अपने मन में स्थिर करना।इन साधनाओं से शिष्य का मनोनिवृत्त होता है, आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ती है और वह तत्वज्ञान की गहराई को अनुभव कर पाने लगता है। ये साधनाएँ नियमित और पुनरावृत्तिपूर्ण अभ्यास से प्रभावी होती हैं और शिष्य को तत्वज्ञान के मार्ग पर अग्रसर करती हैं