आध्यात्मिक में जब गुरु दिक्सित कर शिष्य को शुरू में मौखिक फिर मो न साधना फिर ध्यान समाधि में धीरे धीरे सिखाता है पहले जप अब जप का आंतरिक्ष अध्यातम (आध्यात्मिक अंतरिक्ष) और अनाहद (अनाहत) नाद तथा ध्यान में मौन साधना का वायु तत्व पर गहरा प्रभाव होता है।जप का आंतरिक्ष अध्यातम और अनाहद नाद:जप से उत्पन्न ध्वनि की तरंगें ब्रह्मांडीय अनाहत नाद से मेल खाती हैं। अनाहद नाद को बिना किसी टकराहट की निरंतर चलने वाली दिव्य ध्वनि माना जाता है जो स्वयं से उत्पन्न होती है। जब साधक ॐ या किसी मंत्र का जप करता है, तो उसकी आंतरिक ध्वनि ब्रह्मांडीय अनाहद नाद की तरंगों से तालमेल बिठाती है जिससे मन शुद्ध और स्थितिप्रज्ञ हो जाता है। यह सहज रूप से चेतना को आत्मा से जोड़ती है और मानसिक शांति, ध्यान की गहराई एवं आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देती है। ध्यान में मौन साधना (मोहन) इस अनाहद नाद को सुनने तथा उसके साथ एकाकार होने की प्रक्रिया है। इस अवस्था में मन शून्यता और पूर्ण मौन की स्थिति में चला जाता है।वायु तत्व में प्रभाव:जप और ध्यान में मौन साधना वायु तत्व को सक्रिय और संतुलित करती है। सांस के प्रवाह से जुड़ी यह प्रक्रिया नाडि शोधन प्राणायाम जैसी विधियों से वायु तत्व में अनुशासन लाती है। इससे शरीर और मन की ऊर्जा संरेखित होती है तथा मानसिक विकार और तंद्रा दूर होती है। वायु तत्व के शुद्धिकरण से जीवन शक्ति (प्राण) स्थिर होती है, जिससे ध्यान के दौरान स्थिरता और मानसिक एकाग्रता आती है। वायु तत्व की गति नियंत्रण से अनाहद नाद का अनुभव और गहरा होता है, जो ध्यान को और अधिक प्रभावी बनाता है।संक्षेप में, जप का आंतरिक्ष अध्यातम और अनाहद नाद में निरंतरता मन को शुद्ध करता है, ऊर्जा को संतुलित करता है और वायु तत्व को नियंत्रित कर ध्यान की गहरी स्थिति में पहुंचाता है। मौन साधना इस प्रक्रिया का अभिन्न अंग है जो दिव्य आंतरिक ध्वनि के साथ एकाकार होने का मार्ग खोलती है। इस प्रकार जप और मौन साधना से वायु तत्व पर स्थिरता और स्वास्थ्य का प्रभाव भी पड़ता है, जो समग्र आध्यात्मिक प्रगति के लिए अनिवार्य है इसके बाद जब शिष्य पूर्ण रूप से परिपकव हो जाता है अब साधना का जो सिर सुरु होता है वहः है अनाहद नाद सुनने के वैज्ञानिक कारण मुख्यतः शरीर के अंदर ऊर्जा और चेतना के स्तर में बदलाव से जुड़े हैं। हृदय के ठीक ऊपर स्थित अनाहत चक्र, जो वायु तत्व से प्रभावित होता है, यहां से अनाहद नाद की उत्पत्ति मानी जाती है। ध्यान की गहरी अवस्था में प्राण की ऊर्जा (विशेषकर उडाना प्राण) सक्रिय होती है, जिससे चेतना का विस्तार होता है और आंतरिक ध्वनियां सुनाई देने लगती हैं।यह नाद बाहरी आवाज़ नहीं, बल्कि शरीर के सूक्ष्म चक्रों में संचालित ऊर्जा की कंपन और तरंगों का अनुभव है। क्रिया योग और गहन ध्यान से शरीर के सात चक्रों में स्थित अग्नि और अन्य तत्व सक्रिय होते हैं, जिससे ये अनाहद नाद सुनाई देने लगती है। इस प्रक्रिया में मन की विक्षिप्तता कम होकर मस्तिष्क की तरंगें धीमी और स्थिर होती हैं, जिससे सूक्ष्म ध्वनियों को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती है।इसके अलावा, अनाहद नाद सुनने से मन को गहरी शांति, आनंद और ऊर्जा का संचार होता है, जो मानसिक स्वास्थ्य और ध्यान की गुणवत्ता को बढ़ाता है। यह चेतना के उच्च स्तर पर पहुंचने का सूचक है, जो शरीर के विद्युत और जैव रसायनिक प्रक्रियाओं के साथ मेल खाता है। डॉक्टर और वैज्ञानिक भी गहरे ध्यान में मस्तिष्क तरंगों और ऊर्जा के आयामों में बदलाव को देख चुके हैं, जो अनाहद नाद की अनुभूति का आधार बनता है।संक्षेप में, अनाहद नाद सुनना शारीरिक ऊर्जा केंद्रों (चक्र) की सक्रियता और चेतना की गहराई का फल है, जो ध्यान और योगाभ्यास से प्राप्त होता है। यह भीतर की सूक्ष्म ऊर्जा तरंगों का प्रतिध्वनि स्वरूप है और इसका अनुभव वैज्ञानिक रूप से मस्तिष्क की तरंगों, ऊर्जा प्रवाह और प्राणवायु की क्रियाशीलता से जुड़ा है