सहस्त्रार चक्र जागरण: मानसिक और शारीरिक परिवर्तन का दिव्य अनुभव

जागृत सहस्त्रार चक्र के बाद मानसिक बदलाव मुख्यतः चेतना के विस्तार और आध्यात्मिक जागृति से जुड़े होते हैं, जैसे गहरी शांति, आत्मबोध और बाह्य संसार से वैराग्य का अनुभव। व्यक्ति का दृष्टिकोण व्यापक हो जाता है, छोटी-छोटी बातें परेशान नहीं करतीं तथा जीवन उद्देश्य स्पष्ट अनुभव होता है। मस्तिष्क की क्षमता बढ़ने से अंतर्दृष्टि, सहानुभूति और सकारात्मक सोच प्रबल हो जाती है। प्रमुख मानसिक लक्षणआत्मचिंतन में रुचि: एकांत पसंद आता है, ध्यान और साधना में गहराई आती है, बाहरी शोर से विरक्ति होती है।आध्यात्मिक झुकाव: ईश्वर, आत्मा और ब्रह्मांड के प्रति गहन आकर्षण, सपनों में स्पष्ट दर्शन।वैराग्य और संतुष्टि: भौतिक वस्तुओं में कम रुचि, सादा जीवन में पूर्णता का अनुभव।जागृत सहस्त्रार चक्र के बाद शारीरिक प्रभाव मुख्यतः सूक्ष्म ऊर्जा संतुलन से जुड़े होते हैं, जैसे सिर के ऊपरी भाग यानी सिर के चारो तरफ व शरीर में धक धक की जैसी संवेदना, हल्का सिरदर्द या दबाव महसूस होना। नींद के पैटर्न में परिवर्तन आता है, जहाँ गहरी निद्रा प्राप्त होती है किंतु कभी-कभी अनिद्रा या सपनों में आध्यात्मिक दर्शन दिखाई देते हैं। मस्तिष्क की क्षमता बढ़ने से शारीरिक ऊर्जा स्थिर हो जाती है, भूख कम लगती है और शरीर हल्का अनुभव होता है। प्रमुख शारीरिक लक्षणमूर्धा पर कंपन: सहस्त्रार जागरण से सिर के शिखर पर हल्की थरथराहट या ठंडक का अनुभव, जो अमृत धारण का संकेत है।दृष्टि और श्रवण परिवर्तन: आँखों में सफेद प्रकाश या कान में अनहद नाद सुनाई देना, जो शारीरिक रूप से सिरदर्द या चक्कर का रूप ले सकता है।शरीर की हल्कापन: सम्पूर्ण शरीर में ऊर्जा वृद्धि, थकान की कमी किंतु अत्यधिक ध्यान से शारीरिक कमजोरी यदि संतुलन न रखा जाए।

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