ध्यान द्वारा मन को माया और संसारिक भोगों से हटाकर आत्मा के शुद्ध स्वरूप की ओर मोड़ा जा सकता है। नश्वर (अस्थायी) और शाश्वत...
आत्मा शुद्ध, शाश्वत, और अमर है। इसका स्वभाव सत्य (सत), चेतना (चित), और आनंद (आनंद) है। यह माया से परे और सभी बंधनों से...
मन और आत्मा के बीच का अंतर समझना आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मन माया में लिप्त होता है, क्योंकि यह संसारिक...
वैराग्य और मोक्ष का साधन: शरीर की अस्थिरता, जरा (बुढ़ापा), रोग, और मृत्यु को देखकर साधक में वैराग्य उत्पन्न होता है। यह वैराग्य उसे...
भगवद गीता: भगवान कृष्ण ने कहा है, “अशरीरं शरीरेषु” – आत्मा शरीर में रहते हुए भी उससे परे है। कठोपनिषद: “अणोरणीयान् महतो महीयान्” –...
स्थूल शरीर (भौतिक शरीर) वह शरीर है जो हमें प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है और जिसके माध्यम से हम इस भौतिक संसार का...
भगवद गीता: “वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्” – आत्मा अविनाशी, नित्य, अजन्मा, और अपरिवर्तनीय है। उपनिषद: “अहं ब्रह्मास्मि” – आत्मा ही ब्रह्म (परमात्मा) है। बृहदारण्यक...
मुक्ति (मोक्ष): आत्मा का साक्षात्कार ही मोक्ष का मार्ग है, जो पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति दिलाता है। अहंकार का विनाश: आत्मा के ज्ञान...
शरीर, मन, और बुद्धि आत्मा के साधन मात्र हैं। आत्मा इनसे परे है और इन्हें नियंत्रित करती है, लेकिन स्वयं इनसे प्रभावित नहीं होती।...