मनुष्य नदी को दो प्रकार से पार कर सकता है, तैरकर और नाव मै बैठकर!इस भवसागर से पार होने मै भक्ति और ज्ञान दो...
गुरु शिष्य पर जब शक्तिपात करता है तो शिष्य के गुण धर्म और सहनशक्ति देख कर कितनी वो शक्ति को ग्रहण कर सकता है...
मैं आदर्श बातों से थोड़ा दूर व्यवहारिक चिंतन और सोच में लग गया हूं क्योंकि आदर्श स्थिति तक पहुंचने के लिए एक बहुत लंबी...
हम गुरु को अपनी शान शोकत ओर धन और दिखावे से गुरु को अपनी ओरआकर्षित करना चाहते है और सोचते इस दिखावे से गुरु...
हम शिष्य यूँ तो दिन भर में सैकड़ों ग़लतियाँ करते हैं पर कुछ ग़लतियाँ ऐसी होती है जो हमको गुरु की नज़रों में गिरा...
आध्यात्मिक भाषा में, काम के लिए काम करने की प्रतिबद्धता, अर्थात्, सभी के ऊपर अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता देना निष्काम कर्म के रूप में...
गुरु की नजर में शिष्य योग्य है तो उसके लिए गुरु का दर्जा ईश्वर तुल्य है और गुरु की मेहर से वो तप कर...
गुरु के पास बहुत कम शिष्य ऐसे आते है जिनमे गुरु के प्रति निष्ठा समर्पण ओर समर्पित ओर स्वम् के मोक्ष पाने की कामना ...
सदगुरुदेव कहते है के ज्यादा तर लोग गुरु से जुड़ते है और अपने जीवन की परेशानियों का समाधान होने के बाद उन्हे भूल जाते...
दूसरे साधकोंमें तो कमी भी रह सकती है और अन्तसमयमें अन्यचिन्तन, मूर्च्छा आदि किसी कारणसे साधनसे विचलित होकर वे योगभ्रष्ट भी हो सकते हैं,...