Vachan

जब कोई महात्मा या सद्गुरु अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा शिष्य के शरीर, मन और आत्मा के हर कण में अपनी ऊर्जा का संचार करता है, तो शिष्य एक अनहद (असीम और अवर्णनीय) अनुभव में प्रवेश करता है। यह अनुभव सामान्य इंद्रियों की सीमा से परे होता है। यदि शिष्य इस अवस्था को पहचान कर पूर्ण समर्पण भाव से अपने गुरु के चरणों में अर्पित हो जाए, तो वह पूर्णता (आत्मिक सिद्धि या मोक्ष) की ओर अग्रसर हो जाता है।

इस मार्ग में आगे बढ़ने के लिए शिष्य में सत्यनिष्ठा (सत्य के प्रति दृढ़ता), समर्पण, समभाव (सबके प्रति समान दृष्टि) और सम्यकता (सही दृष्टिकोण...

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“समर्पण भाव लिए सब भाग रहे गुरु की ओर,जो भेद समर्पण को जान गया पत्नी से, वो सच्चा गुरु सेवक भाई।” भावार्थ: “समर्पण भाव...

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“गरीब असत कमलदल—बाह्य भी शून्य, अंतर्मन भी शून्य।” यहाँ “गरीब असत कमलदल” का अर्थ है वह कमल-पत्र जो न तो असली (सत्) है और...

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“कबीर पासा पकड़या प्रेम का, सारी किया शरीर” यहाँ “पासा” शब्द का प्रयोग जुए के लिए किया गया है, पर यह सांसारिक जुए की...

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“मिल जाये जब खाक”अर्थ:जब इंसान अपने शरीर और जीवन के भौतिक स्वरूप को नश्वर (मरणशील) समझ लेता है। “खाक” यानी मिट्टी, यह संकेत देता...

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अध्यात्म (Spirituality): अर्थ: अध्यात्म का मूल अर्थ है – “आत्मा की ओर लौटना” या स्वयं को जानना। यह किसी धर्म या पूजा पद्धति तक...

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बहुत सुंदर और गहराई से भरा सवाल है। यह प्रश्न केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि जीवन की बहुत सूक्ष्म सच्चाई को छूता है। “शिष्य जब...

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