Guru Ji

जब हनुमान जी सीता माता से मिलने के बाद लंका में उपद्रव मचाते हैं — अशोक वाटिका उजाड़ देते हैं, राक्षसों को मारते हैं और रावण के पुत्र अक्षयकुमार को भी मार डालते हैं — तब उन्हें पकड़कर रावण के दरबार में लाया जाता है।

रावण क्रोधित हो उठता है, पर वध नहीं करता क्योंकि वह उन्हें दूत मानता है। इसलिए किसी भी दूत को मर्त्यु की सजा नही...

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गुरु: अज्ञान से ज्ञान की ओरगुरु शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘गु’ (अंधकार) और ‘रु’ (प्रकाश)। अर्थात, गुरु वह है जो अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश प्रदान करता है। भारतीय संस्कृति में गुरु को ‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’ के समान माना गया है:

**गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।गुरु साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ **इस मंत्र में गुरु को साक्षात् परम ब्रह्म कहा गया है, जो शिष्य...

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“जब जन्म और मरण दोनों ही अनिश्चित हैं…”जीवन और मृत्यु पर किसी का पूर्ण नियंत्रण नहीं है, और ये दोनों ही रहस्य से भरे हुए हैं। कोई नहीं जानता कि हम कब जन्म लेंगे और कब मृत्यु होगी। यह अनिश्चितता ही जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है तो फिर आत्मिक शांति और ईश्वर में विश्वास क्यो ओर किसलिए जब जीवन और मौत दोनो का कोई पता नही हमको बस जो जीवन मिला है उसमें मौत शांति से हो और कोई कस्ट न हो इसलिए मानसिक धोखा में रहते हैकुछ लोग मानते हैं कि ईश्वर और आत्मिक विश्वास एक मानसिक सहारा मानते है इसके लकए पटें भक्ति ज्ञान और ध्यान की साधना में आने में को।लगते है और मॉनसिक ओर आत्मिक शांति के लियर ये रास्ता चुनते है और अपने आचरण को सात्विक बना लेते है और सुख दुख को भूल एक संयमित दशा में जीवन जीते है यह ऐसी भावना जो अराजकता में भी व्यवस्था और अर्थ देने का काम करती है। यह जरूरी नहीं कि यह धोखा हो; यह एक तरह का मानसिक संतुलन हो सकता है, जिससे व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों का सामना कर पाता है।।अनुभवजन्य विश्वास:।कई लोगों के जीवन में ऐसे अनुभव होते हैं जो उन्हें यह महसूस कराते हैं कि कोई उच्च शक्ति है, चाहे वो “ईश्वर”, “ब्रह्म”, “ऊर्जा” या कुछ और हो। यह अनुभव व्यक्तिपरक होता है — कोई इसे सत्य मानता है, कोई भ्रम। पर ये सत्य है कि किसी संत की शरण मे जंस्कार हम आत्मिक शांति को।महसूस करते है और हमे उसके ज्ञान से मिलती है ये एक विशेष महत्व रखती है जो मस्तिष्क को।ऊर्जावान कर हमें जीवन सात्विक जीने की।प्रेरणा देती है इसके अलावा धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता हमारे समाज और संस्कृति में आध्यात्मिकता बचपन से सिखाई जाती है। इसका उद्देश्य यह भी होता है कि व्यक्ति नैतिक और संयमित जीवन जिए, चाहे वो ईश्वर को मानता हो या न हो।यदि से हमे एक अलग अनुभूति मिलती है जो हमे आध्यात्मिकता की ओर ले जाती हैं इसके लिए हम आत्मिक शांति को तलाश्य करते है यह हमारे लिए एक आवश्यकता या विकल्प होती हचाहे कोई ईश्वर को माने या न माने, आत्मिक शांति एक ऐसी स्थिति है जिसकी हर व्यक्ति को ज़रूरत है — जैसे कि मन की स्थिरता, संतुलन, और जीवन के अर्थ की अनुभूति। इसे कोई ध्यान, कला, प्रकृति, प्रेम, सेवा या ज्ञान के माध्यम से भी प्राप्त कर सकता है। मेरी सोच कर अनुसार मैं ये सोचता हूं कि

आत्मिक विश्वास या ईश्वर में भरोसा जरूरी नहीं कि किसी धोखे की उपज हो। यह चेतना की एक दिशा भी हो सकता है —...

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शिवजी की जटाओं में गंगा को समाहित करने की कथा केवल पौराणिक गाथा नहीं है, बल्कि शिवजी की आध्यात्मिक साधना की ऊंचाइयों को दर्शाता है कि वे कितने बड़े साधक ओर आध्यात्मिक योगी थे और उनकी पहुच अध्यात्म में सर्वोत्तम स्तिथि पर थी मेरी सोच के अनुसार बल्कि इसमें गहरा ज्ञान छुपा हुआ है जो एक आध्यात्मिक योगी ही इसे जान सकता है साधरण मनुष्य की बात नही इस कोसमझने के लिए हमें शिव, गंगा, जटा, और भागीरथ के प्रयत्न को प्रतीकात्मक आध्यात्मिक रूप से देखना होगा।-गंगा: चेतना की सर्वोच्च धारा गंगा कोई सामान्य नदी नहीं, बल्कि उसे देवत्व प्राप्त है। वह दिव्य चेतना (Divine Consciousness) या ब्रह्मज्ञान का प्रतीक है।गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरना दर्शाता है कि दिव्य ज्ञान को धरती या सांसारिक जीवन में उतारना कठिन और खतरनाक होता है, यदि वह बिना संयम और साधना के आता है।जिस प्रकार गंगा का वेग इतना तीव्र था कि वह पृथ्वी को ध्वस्त कर सकती थी, उसी तरह बिना तैयारी के मिला ज्ञान अहंकार, भ्रम और विनाश का कारण बन सकता है। शिव: पूर्ण योगी और ब्रह्म से एकात्म शिव को ‘महायोगी’ कहा गया है। वह ध्यानमग्न, निर्लिप्त और निर्विकारी हैं शिव की जटाएं प्रतीक हैं स्थिर, संयमित, और साधित मन की। जब चेतना की धारा (गंगा) इतनी तीव्र हो, तो उसे संभालने के लिए वैसा ही मन चाहिए, जो शिव की तरह पूर्ण रूप से निःस्पंद और जाग्रत हो।शिव का गंगा को जटाओं में रोकना बताता है कि ज्ञान और चेतना को केवल वही व्यक्ति संभाल सकता है जो ध्यान और आत्म-नियंत्रण में सिद्ध हो।. जटा: साधना और मानसिक नियंत्रण जटाएं आम तौर पर बढ़े हुए बालों का प्रतीक हैं, लेकिन आध्यात्मिक अर्थ में यह नियंत्रित ऊर्जा (Controlled Energy) और ध्यान की गहराई का संकेत देती हैं।

शिव की जटाएं यह दर्शाती हैं कि उन्होंने अपनी जीवन ऊर्जा को भीतर की ओर मोड़ा है (उर्ध्वगामी ऊर्जा)।जब गंगा उनकी जटाओं में आती...

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।गुरु और शिष्य का संबंध एक पवित्र, गहरा और परिवर्तनकारी बंधन है, जो ज्ञान, मार्गदर्शन और आत्मिक विकास पर आधारित होता है। यह केवल शिक्षक और विद्यार्थी का रिश्ता नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और भावनात्मक संनाद है, जिसमें गुरु शिष्य को जीवन के लक्ष्यों, मूल्यों और सत्य की ओर ले जाता है।गुरु-शिष्य संबंध की प्रमुख विशेषताएँ:ज्ञान का आदान-प्रदान: गुरु अपने अनुभव, बुद्धि और ज्ञान को शिष्य के साथ साझा करता है, उसे अज्ञानता के अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है।उदाहरण: भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को गुरु के रूप में जीवन, कर्तव्य और धर्म का ज्ञान देते हैं।विश्वास और समर्पण: शिष्य का गुरु के प्रति पूर्ण विश्वास और समर्पण इस संबंध का आधार है। शिष्य गुरु के मार्गदर्शन को बिना संदेह स्वीकार करता है।अनुशासन और मार्गदर्शन: गुरु शिष्य को अनुशासित जीवन जीने की प्रेरणा देता है, उसे लक्ष्य के प्रति एकाग्र और सावधान रखता है, जैसा कि आपने अर्जुन का उदाहरण दिया।आध्यात्मिक और नैतिक विकास: गुरु न केवल शैक्षिक या व्यावहारिक ज्ञान देता है, बल्कि शिष्य के चरित्र, नैतिकता और आंतरिक शक्ति को भी निखारता है।पारस्परिक सम्मान: यह संबंध द्विपक्षीय सम्मान पर टिका होता है। गुरु शिष्य की जिज्ञासा और क्षमता का सम्मान करता है, जबकि शिष्य गुरु की विद्या और मार्गदर्शन को श्रद्धा देता है।उदाहरण:द्रोणाचार्य और अर्जुन: महाभारत में द्रोणाचार्य ने अर्जुन को न केवल धनुर्विद्या सिखाई, बल्कि उसे कर्तव्यनिष्ठा और एकाग्रता का पाठ भी पढ़ाया। अर्जुन का गुरु के प्रति समर्पण और अनुशासन उसे महान योद्धा बनाता है।स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस: स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण के मार्गदर्शन में आध्यात्मिक और दार्शनिक गहराई प्राप्त की, जिसने उन्हें विश्व स्तर पर भारतीय संस्कृति का प्रचारक बना पिताजी साहब का कहना था कि जो गुरु के लिए अपनी जान देने की भी परवाह न करता हो उसके लिए गुरु सव्व्म को कुर्बान कर देता है इसीलिए ।गुरु द्वारा बनाया गया शिष्य अर्जुन की तरह अपने लक्ष्य के प्रति पूर्णतः समर्पित और सावधान रहना चाहिए ओर गुरु का मार्गदर्शन उसे व्यर्थ की बातों से दूर रखता है, जिससे उसका समय और ऊर्जा केवल लक्ष्य प्राप्ति में लगती है। यह एकाग्रता और अनुशासन ही उसे सफलता की ओर ले जाता है।

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