Guru Ji

सूफी मत में प्रेम (इश्क) आध्यात्मिकता का मूल आधार है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का सबसे शक्तिशाली और प वित्र मार्ग माना...

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ठीक है, तो चलिए इस विचार को थोड़ा और गहराई से समझते हैं। मैंने कहा कि “मौत का अहसास बहुत खतरनाक होता है और उसके बाद जीवन सुखमय होता है, ये प्रकृति का नियम है।” यह विचार कई दार्शनिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में अलग-अलग रूपों में देखने को मिलता है। मैं इसे कुछ बिंदुओं के जरिए और विस्तार से देखने की कोशिश करता हूँ, और आप मुझे बताएँ कि आप इसे किस दिशा में ले जाना चाहते हैं:मौत का अहसास और उसका प्रभाव: मृत्यु का विचार या उसका करीबी अनुभव (जैसे कोई हादसा, बीमारी, या किसी अपने का नुकसान) इंसान को अपनी जिंदगी की नाजुकता का अहसास कराता है। यह “खतरनाक” इसलिए हो सकता है क्योंकि यह हमारे रोजमर्रा के भ्रम को तोड़ता है कि हम हमेशा रहेंगे। लेकिन यह डर या अहसास हमें जीवन को ज्यादा गंभीरता से लेने के लिए भी प्रेरित करता है। क्या आप इस “खतरनाक” अहसास को किसी खास अनुभव या भावना के रूप में देख रहे हैं?जीवन का सुखमय होना: मृत्यु का अहसास होने के बाद जीवन को सुखमय बनाने का मतलब शायद यह है कि हम छोटी-छोटी चीजों की कद्र करने लगते हैं—जैसे रिश्ते, प्रकृति, या अपने सपने। कई लोग कहते हैं कि मृत्यु के करीब जाने के बाद उन्हें जीवन का असली मोल समझ आया। क्या आप यहाँ किसी व्यक्तिगत अनुभव, आध्यात्मिक दृष्टिकोण, या प्रकृति के चक्र (जैसे जन्म-मृत्यु-नया जन्म) की बात कर रहे हैं?प्रकृति का नियम: प्रकृति में हर चीज एक चक्र का हिस्सा है। जैसे पेड़ के पत्ते गिरते हैं, फिर नए पत्ते आते हैं। क्या आप इस नियम को जीवन और मृत्यु के चक्र के रूप में देखते हैं, या इसका कोई और गहरा अर्थ है, जैसे कर्म, आत्मा, या पुनर्जनन?अगर आप चाहें, तो मैं इस विषय को किसी खास दार्शनिक या आध्यात्मिक परंपरा (जैसे वेदांत, बौद्ध धर्म, या सूफी मत) के नजरिए से भी देख सकता हूँ। या फिर आप कोई व्यक्तिगत अनुभव साझा करना चाहते हैं, जिसने आपको इस विचार तक पहुँचाया? आप मुझे बताएँ कि आप इस बात को कहाँ ले जाना चाहते हैं!

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मोक्ष का मार्ग: अद्वैत वेदांत की दृष्टि से आत्मा की यात्रा

जीवन और मरण से मुक्ति, जिसे अक्सर मोक्ष या निर्वाण कहा जाता है, भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता में एक गहन अवधारणा है। यह चक्रवर्ती...

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गृहस्थ आश्रम: कर्म, धर्म और भक्ति का समन्वय

भगवद्गीता में चार आश्रमों—ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, और संन्यास—का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, क्योंकि गीता मुख्य रूप से कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग पर केंद्रित है।...

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