Guru Ji

कबीर की दृष्टि: बाहरी कर्म से नहीं, भीतरी प्रेम से मोक्ष

तीरथ तीरथ जग मुवा उंडे पानी नहाए रायही रामहीना जबाकाल घसीटे जाययह दोहा संत कबीर का है, जिसमें वे तीर्थयात्रा और बाहरी कर्मकांडों की...

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उत्तरायण-दक्षिणायन और मोक्ष: संत के लिए समय नहीं, साधना महत्वपूर्ण है

अगर 6 6 महीने उतरायन ओर दक्षिण यायन रहेगा तो क्या दक्षीनयन में जो खत्म होगा चाहे संत हो मोक्ष नही होगी ये फिजूल।की...

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सोहम ध्यान योग केंद्र: सेवा, साधना और संस्कार की जीवंत परंपरा

मेरे पिता डॉक्टर चंद्र गुप्ता जी महात्मा राधा मोहन लाल जी आधोलिया के परम शिष्य रहे और उन्हें ओर महात्मा रामचंद्र जी के परम...

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जीवन और मरण से मुक्ति, जिसे अक्सर मोक्ष या निर्वाण कहा जाता है, भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता में एक गहन अवधारणा है। यह चक्रवर्ती...

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पिताजी बहुत कम बोलते थे और कुछ कहते उसे विस्तार से समझाते थे उनका कहना था कि एक शिष्य का मुख्य धर्म है गुरु...

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पिताजी साहब का कहना था कि जब कोई पूर्ण गुरु जो संत रूप में होता है जब किसी योग्य व्यक्ति को शिष्य बनाता है...

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यह दोहा संत कबीर का है, जिसमें वे तीर्थयात्रा और बाहरी कर्मकांडों की सार्थकता पर प्रश्न उठाते हैं। इसका अर्थ है कि लोग तीर्थ-तीर्थ घूमते हैं, पवित्र जल में स्नान करते हैं, लेकिन वास्तविक भक्ति और आत्मिक शुद्धि हृदय में राम (ईश्वर) के प्रति सच्ची श्रद्धा और प्रेम से ही प्राप्त होती है। केवल बाहरी कर्मकांडों से न तो आत्मा का उद्धार होता है, न ही मृत्यु का भय (काल) टलता है।कबीर कहते हैं कि सच्ची भक्ति भीतर की शुद्धता और ईश्वर के प्रति समर्पण में है, न कि बाहरी तीर्थों या स्नान में।

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