Guru Ji

जब साधक और साध्य एक हो जाएँ

“मैं से मैं की पहुँच और तू बीच में फिर क्या हो” एक रहस्यात्मक सूक्ति या सूफियाना चिंतन जैसी लगती है, जिसमें गहरी आत्मबोध...

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त्रिपुटि से एकत्व तक: भारतीय दर्शन का उज्ज्वल मार्ग

एकत्ववाद का अर्थ है “एकता का सिद्धांत” या “मौनवाद” जिसमें सभी वस्तुओं, जीवों, और घटनाओं की वास्तविकता में एक ही मूल तत्व या सार...

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जीवन का लक्ष्य गुरु के द्वारा

आज्ञा चक्र, प्राणवायु चक्र, सहस्रार चक्र, मूर्धा, कूर्म नाड़ी, प्राण और आत्मा का गमन, ऊर्जा के सहारे चक्र भेदन और गुरु द्वारा शक्तिपात —...

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मैं’ और ‘तू’ की खोज: अद्वैत और भक्ति के बीच पुल

“मैं” (अहं, अहंकार, व्यक्तिगत पहचान) और “तू” (ईश्वर, परमसत्ता, या दुसरा/अन्य) के बीच के संबंध की खोज है।व्याख्या”जानता हूं मैं का अस्तित्व नहीं है”...

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संत परंपरा में उत्तराधिकार: परंपरा, परिवार और संरक्षण का संतुलन

संत किंगद्दी जैसे उच्च कोटि के संतों का हकफसर (उत्तराधिकारी) आमतौर पर उनके परिवार वाले ही होते हैं, न कि अन्य काबिल शिष्य, क्योंकि:पारंपरिक...

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जीवन का लक्ष्य गुरु के द्वारा

आज्ञा चक्र, प्राणवायु चक्र, सहस्रार चक्र, मूर्धा, कूर्म नाड़ी, प्राण और आत्मा का गमन, ऊर्जा के सहारे चक्र भेदन और गुरु द्वारा शक्तिपात —...

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पतंजलि योगसूत्र में कैवल्य का स्वरूप

योगसूत्र (IV अध्याय – कैवल्यपाद) के अनुसार: “पुरुषार्थशून्यानां गुणानां प्रतिप्रसवः कैवल्यम् स्वरूपप्रतिष्ठा वा चितिशक्ति इति।” (योगसूत्र 4.34) अर्थ: जब प्रकृति (गुण) पुरुष के लिए...

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कैवल्य: आत्मस्वरूप में स्थित होने की परम अवस्था

पतंजलि योगसूत्र में कैवल्य का स्वरूप. उपनिषदों और अद्वैत वेदांत में कैवल्य. कैवल्य में भक्ति और प्रेम का स्वाभाविक उदय पतंजलि योगसूत्र में कैवल्ययोगसूत्र...

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