Guru Ji

आध्यात्मिक जीवन जीने के तरीके:. ध्यान और साधना (Meditation and Practice):नियमित ध्यान से मन की चंचलता शांत होती है और व्यक्ति आत्मा से जुड़ता है। प्राणायाम, जप और योगाभ्यास इसमें सहायक हैं।. सदाचार और नैतिक जीवन:सत्य, अहिंसा, करुणा, क्षमा, संतोष और ब्रह्मचर्य जैसे मूल्यों का पालन करना आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है।. सत्संग और स्वाध्याय:संतों, गुरुओं और शास्त्रों के संग से विवेक उत्पन्न होता है। भगवद गीता, उपनिषद, रामायण आदि का नियमित अध्ययन करें। सेवा और परोपकार:निःस्वार्थ सेवा (सेवा भाव) से अहंकार का क्षय होता है और आत्मा की शुद्धि होती है वैराग्य और संयम:विषयों से असक्ति और इंद्रियों पर संयम आत्मिक विकास के लिए ज़रूरी है।ईश्वर के प्रति समर्पण:”मैं नहीं, सब कुछ ईश्वर है” – इस भाव से जीना और कर्मों को ईश्वर को समर्पित करना।आध्यात्मिक दर्शन के प्रमुख सिद्धांत. अद्वैत वेदांत (Advaita Vedanta):”अहं ब्रह्मास्मि” – आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं, द्वैत एक भ्रम है द्वैतवाद (Dualism – जैसे माध्वाचार्य का दर्शन):जीव और ब्रह्म अलग हैं; भगवान की कृपा से ही मोक्ष संभव है. विशिष्टाद्वैत (Ramanujacharya’s Vishishtadvaita):आत्मा ब्रह्म का अंश है, लेकिन स्वतंत्र नहीं है; भक्ति से मोक्ष प्राप्त होता है।योग दर्शन (Patanjali Yoga Sutra):”योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” – चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है।सांख्य दर्शन:प्रकृति और पुरुष दो अलग तत्व हैं; आत्मा (पुरुष) निर्लिप्त है, मोक्ष ज्ञान से प्राप्त होता है।बौद्ध और जैन दर्शन:आत्मज्ञान और अहिंसा के माध्यम से निर्वाण या कैवल्य प्राप्त होता है।

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मिलते न अगर तुम तो हमबेगाने की तरह रहतेजीते अनजान बन के कोईमददगार न मिलतेआये जब से तुम इस जीवन मेबहार आगई हैजीवन जीने...

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आत्मा और भौतिक शरीर का संबंध भारतीय दर्शन, विशेषकर वेदांत, सांख्य और भगवद गीता जैसे ग्रंथों में विस्तार से समझाया गया है। इस संबंध...

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हनुमान जी द्वारा अपनी पूंछ से लंका जलाने की घटना रामायण में एक महत्वपूर्ण और प्रतीकात्मक प्रसंग है, जिसका आध्यात्मिक रहस्य गहरा है। इसे...

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तीन भुवन और चौदह लोक: सृष्टि के रहस्यमय स्तरों की आध्यात्मिक झलक

तीन भुवन (3 Bhavan / Trilok): इसमें उच्च लोक (उपरी 7 लोक) आते हैं जैसे: सत्यलोक, तपलोक, जनलोक, महरलोक, स्वर्लोक, भुवर्लोक, भूर्लोक मुख्यतः भूर्लोक...

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“न तिथिर्न च कालो नायनयोः विचारः।कर्मणा हि नरो गच्छति मोक्षममोक्षम्॥” हिंदी अर्थ:“न तो तिथि निर्णायक है, न काल विशेष, न उत्तरायण-दक्षिणायन का विचार।मनुष्य अपने...

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